फूलदेई 2025 मनाने की तिथि और शुभ मुहूर्त।

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बसंत ऋतु के आगमन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व 'फूलदेई' उत्तराखंड के प्रमुख और लोकप्रिय त्यौहारों में से एक है। जिसे सिर्फ छोटे बच्चों के द्वारा मनाया जाता है, इसीलिये इसे 'लोक बाल पर्व' भी कहते हैं। नन्हें बच्चे इस अवसर पर अपने गांव के सभी घरों की दहलीज पर रंग-बिरंगे फूलों को अर्पित करते हुए घर को अपने आशीर्वचन देते हैं। यही इस त्यौहार की प्रमुख विशेषता है। 

फूलदेई 2025 को मनाने की तिथि और शुभ मुहूर्त 

इस साल फूलदेई का त्यौहार शुक्रवार, 14 मार्च 2025 को मनाया जायेगा। परम्परानुसार फूल अर्पण का शुभ मुहूर्त सूर्योदय 06:27 से शुरू होगा और इस बीच करीब 2 घण्टे तक बच्चे घरों में फूल अर्पण करेंगे। इस तिथि को मीन संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है इस दिन सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करते हैं। उल्लेखनीय है फूलदेई (Phooldei) का त्यौहार समस्त उत्तराखंड में सौर माह चैत्र की संक्रांति यानि पहली तिथि को मनाया जाता है। जो आंग्ल कैलेंडर के अनुसार हर साल 14 या 15 मार्च को आता है। 

Phool dei Festival

फूलदेई त्यौहार की तैयारियां बच्चे और उनके अभिभावक संक्रांति से एक दिन पहले प्रारम्भ कर देते हैं। वे अपने आसपास से बंसत के मौसम में खिले विभिन्न प्रकार के फूलों को चुनकर लाते हैं। जिनमें प्योंली, बुराँश, बासिंग, आड़ू, खुमानी, भिटौर, मेहल आदि के फूल प्रमुख होते हैं। पारम्परिक रिंगाल के टुपरों यानि टोकरियों की साफ सफाई और लिपाई कर उनमें धारे डाले जाते हैं। फिर इन टोकरियों को फूलों से भरा जाता है। 

सौर माह चैत्र संक्रांति की सुबह बच्चे स्नान कर सबसे पहले अपने घर और पास के मंदिर में फूल डालते हैं। अपने घर से दक्षिणा में गुड़ और चाँवल प्राप्त कर अन्य बच्चों  के साथ टोलियों में गांव के प्रत्येक घर की देहरी में फूल डालने जाते हैं। वे घरों की दहलीज पर फूल बिखेरते हुए इस गीत को गाते हैं -

फूल-फूलदेई, छम्मा देई, 
दैणी द्वार, भर भकार 
यो देई कैं बारम्बार नमस्कार 
पूजैं द्वार, फूल-फूलदेई 
फूल-फूलदेई।   

बच्चों के मुंह से कर्णप्रिय स्वर में इन आशीर्वचनों को सुनकर घर की महिला उन्हें ख़ुशी से कच्चे चांवल और छोटी -छोटी गुड़ की डलियां उनके पात्रों में दक्षिणास्वरूप डालती हैं। बच्चे इस उपहार को ख़ुशी के साथ ग्रहण करते हैं। 

उत्तराखंड के कुमाऊँ में बच्चों के इस त्योहार को फूलदेई, गढ़वाल में 'फूल संक्रांद' कहा जाता है। यह पर्व मुख्यतः संक्रांति के दिन ही मनाया जाता है लेकिन कुछ स्थानों में इस त्यौहार को 8 दिन और कुछ स्थानों में महीने भर मनाते हैं। 

बच्चों को दक्षिणा में प्राप्त गुड़ और चांवल से एक ख़ास पकवान 'साई' बनाई जाती है।  जिसे बच्चे और परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर ग्रहण करते हैं। वहीं इसे अपने आस पड़ोस में बाँटने की भी परम्परा है।  

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Mythological story of Phooldei Festival

उत्तराखंड में फूलदेई की शुरुवात कैसे हुई, लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। प्रचलित लोककथाओं में प्योंली की लोककथा भी कही जाती है, वहीं शिव के कैलाश में पुष्प की पूजा और महत्व का वर्णन सुनने को मिलता है। इन लोककथाओं को पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर जाएं - फूलदेई त्यौहार पर प्रचलित लोककथाएं।

फूलदेई एक ऐसा त्यौहार है जो बच्चों को बचपन से ही प्रकृति से जोड़ता है। उनमें रचनात्मकता, सामाजिक और परोपकार की भावना को विकसित करता है। 

फूलदेई पर्व के बारे में विस्तृत में पढ़ने के लिए आप इस लिंक में जाएं - उत्तराखंड का फूलदेई त्यौहार: प्रकृति का उत्सव 

फूलदेई की खास बातें:

  • यह त्योहार सौर माह चैत्र महीने के प्रथम दिन मनाया जाता है।  
  • इस त्योहार में बच्चे फूल चुनकर लाते हैं और पारंपरिक पोषाकों में लोकगीत गाते हुए इन फूलों को हर घर की देहरी पर अर्पित करते हैं। 
  • इन फूलों में प्योंली, बुरांश, भिटौर, बासिंग आदि प्रमुख हैं, जो सिर्फ इसी समय खिलते हैं। 
  • बच्चों द्वारा घरों में फूल अर्पित करने पर उन्हें उपहार स्वरूप चाँवल, गुड़ और सिक्के प्रदान किये जाते हैं। 
  • इस दिन से वसंत के गीत 'ऋतुरैंण' को भी गाया जाता है। 
  • शिशिर ऋतु को विदाई दी जाती है और वसंत के आगमन का उल्लास मनाया जाता है। 
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फूलदेई से जुड़े FAQ 

फूलदेई का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
फूलदेई का त्यौहार हिन्दू नववर्ष के आगमन, प्रकृति के नवजीवन और ऋतुराज बसंत के शुभ आगमन पर स्वागत पर्व है।  
फुलारी किसे कहते हैं ?
फूलदेई के दिन फूल डालने जा रहे बच्चों की टोली को फुलारी कहते हैं। 
फूल संक्रांति क्या होती है?
फूलदेई को गढ़वाल में 'फूल संक्रांति' के नाम से जानते हैं। 
उत्तराखंड में फूलदेई कैसे मनाई जाती है?
इस पर्व पर बच्चे बसंत में खिले नवीन फूलों को चुनकर लाते हैं और हर घर की दहलीज पर फूल अर्पित करते हैं। 
फूल देई पर किसकी पूजा की जाती है ?
इस पर्व पर 'घोघा देवी' की पूजा की जाती हैं। जिन्हें सृष्टि की देवी माना जाता है। 
फूलदेई को बाल पर्व क्यों कहा जाता है?
इस पर्व को सिर्फ बच्चों द्वारा मनाया जाता है और यह उनके लोकप्रिय पर्वों में से एक है। इसीलिये फूलदेई को 'बाल पर्व' की संज्ञा दी गई है। 

फूलदेई मात्र एक क्षेत्र विशेष का धार्मिक या सांस्कृतिक त्यौहार ही नहीं अपितु प्रकृति प्रेम, सामाजिक एकता और उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक भी है। यह त्यौहार खासकर बच्चों में रचनात्मकता, सामाजिक और परोपकार की भावना को बढ़ाता है। वर्तमान समय में जब पारंपरिक त्योहारों का स्वरूप बदल रहा है, वहीं फूलदेई की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। इस पर्व को संजोकर रखना हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने जैसा है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ता है। 


आप सभी को फूलदेई के पावन पर्व की ढेरों बधाई और शुभकामनायें।