Uttarakhand Movement: उत्तराखंड राज्य प्राप्ति की संघर्ष गाथा (वर्ष 1938-2000)

Uttarakhand Movement
फोटो : उत्तराखंड आंदोलन 

उत्तराखंड भारत के उत्तर में हिमालय की तलहटी में स्थित एक सुरम्य पहाड़ी प्रदेश है। जिसकी अंतरराष्ट्रीय सीमायें उत्तर में तिब्बत (चीन अधिकृत) और पूर्व में नेपाल से लगती हैं। वहीं पश्चिम में प्रदेश सीमा हिमाचल और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से लगती हैं। उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है और क्षेत्रफल लगभग 53,483 वर्ग किलोमीटर है। दिनांक 9 नवंबर 2000 के दिन उत्तराखंड देश के 27 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

Uttarakhand Movement: उत्तराखंड राज्य की प्राप्ति यहाँ के लोगों के लंबे संघर्ष और शहादत बाद हुई। सर्वप्रथम उत्तराखंड राज्य की मांग वर्ष 1938 में उठी थी और धीरे-धीरे पहाड़ी राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी थी। यहाँ हम आपको उत्तराखंड राज्य बनने की संघर्ष की कहानी से रूबरू करा रहे हैं, ताकि हमारी पीढ़ी को पता लगे कि उत्तराखंड राज्य यूँ ही नहीं प्राप्त हो गया।

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उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के महत्वपूर्ण तथ्य  

वर्ष 1938 से पहले गोरखों के आक्रमण व उनके द्वारा किये अत्याचारों से ब्रिटिश शासन द्वारा मुक्ति देने व बाद में  अंग्रेजों द्वारा भी किये गये शोषण से आहत होकर उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियों में इस क्षेत्र के लिये एक पृथक राजनैतिक व प्रशासनिक इकाई गठित करने पर गंभीरता से सहमति घर बना रही थी। समय-समय पर वे इसकी मांग भी प्रशासन से करते रहे। 

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  1. वर्ष 1938 :  5-6 मई, को कांग्रेस के श्रीनगर गढ़वाल सम्मेलन में क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के लिये एक पृथक प्रशासनिक व्यवस्था की भी मांग की गई। इस सम्मेलन में माननीय प्रताप सिह नेगी, जवाहर लाल नेहरू व विजय लक्ष्मी पंडित भी उपस्थित थे। 
  2. वर्ष 1946 : हल्द्वानी सम्मेलन में कुमाऊँ केसरी माननीय बद्रीदत्त पाण्डे, पूर्णचन्द्र तिवारी, व गढ़वाल केसरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक प्रशासनिक इकाई गठित करने की मांग की किन्तु इसे उत्तराखण्ड के निवासी एवं तात्कालिक संयुक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अस्वीकार कर दिया। 
  3. वर्ष 1952 : देश की प्रमुख राजनैतिक दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम महासचिव, पी.सी. जोशी ने भारत सरकार से प्रथक उत्तराखण्ड राज्य गठन करने का एक ज्ञापन भारत सरकार को सौंपा। पेशावर काण्ड के नायक व प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्र सिंह गढ़वाली ने भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के समक्ष पृथक पर्वतीय राज्य की मांग का एक ज्ञापन दिया। 
  4. वर्ष 1955 : 22 मई नई को दिल्ली में पर्वतीय जनविकास समिति की आम सभा सम्पन्न। उत्तराखण्ड क्षेत्र को प्रस्तावित हिमाचल प्रदेश में मिला कर वृहद हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग। 
  5. वर्ष 1956 : पृथक हिमाचल प्रदेश बनाने की मांग राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा ठुकराने के बावजूद गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त ने अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुये हिमाचल प्रदेश की मांग को सिद्धांत रूप में स्वीकार किया। किन्तु उत्तराखण्ड के बारे में कुछ नहीं किया। 
  6. वर्ष 1966 : अगस्त माह में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेज कर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग की। 
  7. वर्ष 1967 : (10-11 जून) : जगमोहन सिंह नेगी एवं चन्द्र भानु गुप्त की अगुवाई में रामनगर कांग्रेस सम्मेलन में पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिये पृथक प्रशासनिक आयोग का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया। 24 -25  जून, पृथक पर्वतीय राज्य प्राप्ति के लिये आठ पर्वतीय जिलों की एक "पर्वतीय राज्य परिषद" का गठन नैनीताल में किया गया जिसमें दयाकृष्ण पान्डेय अध्यक्ष एवम ऋशिबल्लभ सुन्दरियाल, गोविन्द सिहं मेहरा आदि शामिल थे। 14 -15 अक्टूबर: दिल्ली में उत्तराखण्ड विकास संगोष्टी का उद्घाटन तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री अशोक मेहता द्वारा दिया गया जिसमें सांसद एवं टिहरी नरेश मानवेन्द्र शाह ने क्षेत्र पिछड़ेपन को दूर करने के लिये केन्द्र शासित प्रदेश की मांग की। 
  8. वर्ष 1968 : लोकसभा में सांसद एवं टिहरी नरेश मानवेन्द्र शाह के प्रस्ताव के आधार पर योजना आयोग ने पर्वतीय नियोजन प्रकोष्ठ खोला। 
  9. वर्ष 1970 : (12 मई) तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान प्राथमिकता से करने की घोषणा की। 
  10. वर्ष 1971 : मा० मानवेन्द्र शाह, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, इन्द्रमणि बडोनी और लक्ष्मण सिंह जी ने अलग राज्य के लिये कई जगह आन्दोलन किये। 
  11. वर्ष 1972 : श्री ऋषि बल्लभ सुन्दरियाल एवं  पूरन सिंह डंगवाल सहित 21 लोगों ने अलग राज्य की मांग को लेकर बोट क्लब पर गिरफ़्तारी दी। 
  12. वर्ष 1973 : पर्वतीय राज्य परिषद का नाम उत्तराखण्ड राज्य परिषद किया गया।  सांसद प्रताप सिंह बिष्ट अध्यक्ष, मोहन उप्रेती, नारायण सुंदरियाल सदस्य बने। 
  13. वर्ष 1978 : चमोली से विधायक प्रताप सिंह की अगुवाई में बदरीनाथ से दिल्ली बोट क्लब तक पदयात्रा और संसद का घेराव का प्रयास. दिसम्बर में राष्ट्रपति को ज्ञापन देते समय 19 महिलाओं सहित 71 लोगों को तिहाड़ जेल भेजा गया, जिन्हें 12 दिसम्बर को रिहा किया गया। 
  14. वर्ष 1979 : सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तराखण्ड राज्य परिषद का गठन।  31 जनवरी को भारी वर्षा एवं  कड़ाके की ठंड के बाबजूद दिल्ली में 15 हजार से भी अधिक लोगों ने पृथक राज्य के लिये मार्च किया। (24-25  जुलाई) मसूरी में पत्रकार द्वारिका प्रसाद उनियाल के नेतृत्व में पर्वतीय जन विकास सम्मेलन का आयोजन। इसी में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना। सर्व श्री नित्यानन्द भट्ट, डी.डी. पंत, जगदीश कापड़ी, के. एन. उनियाल, ललित किशोर पांडे, बीर सिंह ठाकुर, हुकम सिंह पंवार, इन्द्रमणि बडोनी और देवेन्द्र सनवाल ने भाग लिया। सम्मेलन में यह राय बनी कि जब तक उत्तराखण्ड के लोग राजनीतिक संगठन के रूप एकजुट नहीं हो जाते, तब तक उत्तराखण्ड राज्य नहीं बन सकता अर्थात उनका शोषण जारी रहेगा। इसकी परिणिति उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना में हुई। 
  15. वर्ष 1980 : उत्तराखण्ड क्रांति दल ने घोषणा की कि उत्तराखण्ड भारतीय संघ का एक शोषण विहीन, वर्ग विहीनऔर धर्म निरपेक्ष राज्य होगा। 
  16. वर्ष 1982 : प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने मई में बद्रीनाथ में उत्तराखण्ड क्रांति दल के प्रतिनिधि मंडल के साथ 45 मिनट तक बातचीत की। 
  17. वर्ष 1983 : 20 जून को राजधानी दिल्ली में चौधरी चरण सिंह ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उत्तराखण्ड राज्य की मांग राष्ट्र हित में नही है। 
  18. वर्ष 1984 : भा.क.पा. की सहयोगी छात्र संगठन, आल इन्डिया स्टूडेंट्स फ़ैडरेशन ने सितम्बर, अक्टूबर में पर्वतीय राज्य के मांग को लेकर गढ़वाल क्षेत्र में 900 कि.मी. लम्बी साईकिल यात्रा की।  23 अप्रैल को नैनीताल में उक्रांद (उत्तराखंड क्रांति दल) ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैनीताल आगमन पर पृथक राज्य के समर्थन में प्रदर्शन किया। 
  19. वर्ष 1987 : माननीय अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन भा.ज.पा. अध्यक्ष ने, उत्तराखण्ड राज्य मांग को पृथकतावादी नाम दिया। 9 अगस्त को बोट क्लब पर अखिल भारतीय प्रवासी उक्रांद द्वारा सांकेतिक भूख हड़ताल और प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया। इसी दिन आल इन्डिया मुस्लिम यूथ कांन्वेन्सन ने उत्तराखण्ड आन्दोलन को समर्थन दिया। 23  नवंबर को युवा नेता धीरेन्द्र प्रताप भदोला ने लोकसभा मे दर्शक दीर्घा में उत्तरखण्ड राज्य निर्माण के समर्थन में नारेबाजी की। 
  20. वर्ष 1988 : 23 फ़रवरी : राज्य आन्दोलन के दूसरे चरण में उक्रांद द्वारा असहयोग आन्दोलन एवम गिरफ़्तारियां दी। 21 जून: अल्मोड़ा में ’नये भारत में नया उत्तराखण्ड’ नारे के साथ ’उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी’ का गठन। 23 अक्टूबर: जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली में हिमालयन कार रैली का उत्तराखण्ड समर्थकों द्वारा विरोध। पुलिस द्वारा लाठी चार्ज। 17 नवंबर : पिथौरागढ़ में नारायण आश्रम से देहारादून तक पैदल यात्रा। 
  21. वर्ष 1989 : तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा उत्तराखण्ड को उ.प्र. का ताज बता कर अलग राज्य बनाने से साफ़ इंकार। 
  22. वर्ष 1990 : 10 अप्रैल: बोट क्लब पर उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के तत्वाधान में भा.ज.पा. ने रैली आयोजित की। 
  23. वर्ष 1991 : 11  मार्च: मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखण्ड राज्य मांग को पुन: खारिज किया। 
  24. वर्ष 1991 : 30 अगस्त: कांग्रेस नेताओं ने "वृहद उत्तराखण्ड" राज्य बनाने की मांग की। 
  25. वर्ष 1991 : उ.प्र. भा.ज.पा. सरकार द्वारा प्रथक राज्य संबंधी प्रस्ताव संस्तुति के साथ केन्द्र सरकार के पास भेजा। भा.ज.पा. ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी पृथक राज्य का वायदा किया। दिसंबर, 1991 का तीसरा सप्ताह: हल्द्वानी-नैनीताल की अपनी यात्रा के दौरान श्री एन.डी. तिवारी ने राष्ट्रीय हित में पृथक राज्य की मांग को अस्वीकार कर दिया।
  26. वर्ष 1192 : हल्द्वानी में, नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखण्ड राज्य का पुन: विरोध किया। 
  27. वर्ष 1993:  जंतर मंतर: "उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति" द्वारा आयोजित रैली। 6 मई, 1993: नई दिल्ली: सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई जिसमें विभिन्न वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया। 1993 : 5 अगस्त को लोक सभा में उत्तराखण्ड राज्य के मुद्दे पर मतदान।  98 सदस्यों ने पक्ष में व 152 ने विपक्ष में मतदान किया।1993 : 23 नवंबर: आंदोलन को नई दिशा देने के लोये दिल्ली व लखनऊ की सरकारों पर व्यापक जन दबाव बनाने के लिये "उत्तराखण्ड जनमोर्चा" का गठन नई दिल्ली में। इसके प्रमुख आंदोलनकारी - जगदीश नेगी, देव सिंह रावत, राजपाल बिष्ट व बी. डी. थपलियाल आदि थे। 
  28. वर्ष 1994 : 24 अप्रैल: दिल्ली के पूर्व निगम आयुक्त बहादुर राम टम्टा के नेत्रत्व में रामलीला मैदान से संसद मार्ग थाने तक विराट प्रदर्शन। 
  29. वर्ष 1994 : 21 जून: तात्कालिक मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य गठन हेतु "रमाशंकर कौशिक" की अगुवाई में एक उपसमिति का गठन किया. इस समिति ने आठ पर्वतीय जनपदों को किला कर एक प्रथक राज्य ’उत्तराखण्ड’ बनाने के लिये 356 पृष्ठों की एक एतिहासिक रिपोर्ट सरकार को सौंपी।  इसमें राजधानी ’गैरसैंण’ बनाने की प्रबल संस्तुति की गई।
  •  17  जून, 1994 : मुलायम सिंह सरकार ने मण्डल कमीशन की रिपोर्ट शिक्षण संस्थानों में लागू करने की अधिसूचना जारी की, जिससे उत्तराखण्ड में राजनैतिक भूचाल आ गया और उत्तराखण्ड राज्य की मांग को नया जीवन प्रदान किया। 
  • 22 जून, 1994 : मुलायम सिंह सरकार ने उत्तराखण्ड के लिये अतिरिक्त मुख्य सचिव नियुक्त करने की घोषणा की। 
  • 11 जुलाई, 1994 : पौडी में उक्रांद का जोरदार प्रदर्शन - 791 लोगों ने गिरफ़्तारी दी। 
  • 2 अगस्त, 1994 : पौडी में, वयोवृद्द नेता मा० इन्द्रमणि बडोनी के नेतृत्व में आमरण अनशन प्रारम्भ। 
  • 7, 8 एवं 9 अगस्त, 1994 : पुलिस का लाठी चार्ज. पूरे उत्तराखण्ड में प्रखर राज्य जनांदोलन का बिगुल बजा।
  • 10 अगस्त, 1994 : श्रीनगर में उत्तराखण्ड छात्र संघर्ष समिति का गठन। 
  • 16 अगस्त, 1994 :  उत्तराखण्ड राज्य के लिये संसद की चौखट, जंतर-मंतर पर उत्तराखण्ड आंदोलनकारी संगठनों का ऐतिहासिक धरना प्रारम्भ हुआ, जो उत्तराखण्ड आंदोलन संचालन समिति व बाद में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के नाम से विख्यात हुआ। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के तमाम आंदोलनकारी संगठन इससे जुड़ गए।  
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उत्तराखंड आन्दोलन अनशन

वर्ष 1994 उत्तराखंड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखंड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज हो गया। उत्तराखंड क्रांतिदल के नेताओं ने अनशन किया।  उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की मांग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखंड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई। 


आंदोलनकारियों पर चली गोलियां, महिलाओं के साथ अभद्रता

उत्तराखंड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियां चलायीं गयीं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में दो अक्टूबर1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखंड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में काफी पेरशान किया गया और उन पर पुलिस ने फायरिंग की और लाठिया बरसायीं तथा महिलाओं के साथ अश्लील व्यवहार और अभद्रता की गयी।  इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुये। इस घटना ने उत्तराखंड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। 

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राज्य आंदोलनकारी हुए शहीद 

अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखंड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलाबारी तथा अनेक मौतें हुई। सात अक्टूबर 1994 को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो गयी इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया ।  

दिनांक 15 अक्टूबर 1994 को देहरादून में कर्फ्यू  लग गया। उसी दिन एक आन्दोलनकारी शहीद हो गया। 27 अक्टूबर 1994 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आन्दोलनकारियों की वार्ता हुयी। इसी बीच श्रीनगर में श्रीयंत्र टापू में अनशनकारियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गये।

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उत्तराखंड राज्य आंदोलन के कुछ प्रमुख नारे 

  1. "लड़ के लेंगे, भिड़ के लेंगे, ले के रहेंगे, उत्तराखण्ड"
  2. "मडुवा-झंगोरा खायेंगे, उत्तराखण्ड बनायेंगे"
  3. "उत्तराखण्ड राज्य हमारा जन्मसिद्द अधिकार है"
  4. "एक ही नारा, एक ही जंग, उत्तराखण्ड-उत्तराखण्ड"
  5. "आज दो, अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो"
  6. "उत्तराखण्ड ने अब ठानी है, गैरसैंण राजधानी है"
  7. "नही होता फैसला जब तक, जंग हमारी जारी है"


लाल किले से उत्तराखंड राज्य की घोषणा 

  • 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा लालकिले से की।
  •  सन् 1998 में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा।
  • उ.प्र. सरकार ने 26 संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा।  
  • केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में प्रस्तुत किया, जो 01 अगस्त 2000 को लोक सभा में तथा 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया।  
  • भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त को अपनी स्वीकृति दे दी। 


इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही 09 नवंबर 2000 को 'उत्तरांचल' राज्य अस्तित्व में आया, जो अब 'उत्तराखंड' नाम से अस्तित्व में है। 

उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण तिथियां : 

  • 9 नवम्बर, 2000- पृथक उत्तराखण्ड राज्य की आधिकारिक घोषणा एवं उत्तरांचल नाम से नये राज्य का गठन।
  • 12 जनवरी, 2001, उत्तराखण्ड विधान सभा का पहला सत्र विधान सभा भवन, देहरादून में प्रारम्भ हुआ।
  • 18 मार्च 2002 - निर्वाचित उत्तराखण्ड विधान सभा का पहला सत्र प्रारम्भ हुआ।
  • 1 जनवरी, 2007- प्रदेश का नाम उत्तरांचल से परिवर्तित कर 'उत्तराखण्ड' किया गया।


सौजन्य : श्री राजेन सामंत मेरा पहाड़ फोरम ।