Maiti Movement: मैती आंदोलन क्या है? जानिए मुख्य बातें

Maiti Andolan Photo
मैती वृक्ष को रोपते नवदम्पति।  

 

उत्तराखंड ने सदैव ही प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान किया है। उनके संरक्षण और संवर्धन में यहाँ के रहवासियों द्वारा निरंतर कार्य किये गए। जब भी उन्हें लगा कि उनके जंगलों को हानि पहुँचने वाली है तो उन्होंने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया है। उनकी यही मुहिम विश्व विख्यात हुई, जो चिपको आंदोलन के नाम से जाती है। इसी से प्रेरित उत्तराखंड में एक मुहिम और है जिसे 'मैती आंदोलन' (Maiti Movement) के नाम से जाना जाता है। 

मैती आंदोलन के अंर्तगत विवाह के अवसर पर नवदम्पति द्वारा वृक्षारोपण किया जाता है। इस रस्म को विवाह की अन्य रस्मों की भांति ही महत्वपूर्ण रस्मों की तरह ही सम्पन्न किया जाता है। यहाँ बारात विदा होने से पूर्व दूल्हा-दुल्हन को एक फलदार पौधे को लगाना होता है। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दूल्हा एक पौधे को रोपता है और दुल्हन इस पौधे को पानी देती है। इसके बाद बेटी के मायके से ससुराल विदा हो जाने पर इस पौधे की देखभाल बेटी के माता-पिता करते हैं। समय-समय पर बेटी मायके आकर इस पेड़ से भेंट करती है। 

पौधा रोपने के बाद दूल्हे द्वारा दुल्हन की सहेलियों को पौधे की देखभाल के लिए कुछ धनराशि देता है। इस राशि को उनके द्वारा जमा कर दिया जाता है। इसी तरह उनके द्वारा बनाया गया कोष भरते जाता है, जिससे वे नर्सरी तैयार करते हैं। गरीब बेटियों के विवाह में इस कोष के धन का उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार यह परम्परा आगे बढ़ती रहती है।  


मैती आंदोलन की मुख्य बातें 

  • मैती एक भावनात्मक पर्यावरण आंदोलन है, जिसके अंतर्गत नवदम्पति विवाह के दिन वृक्षारोपण कर उसकी देखभाल का जिम्मा लेते हैं। 
  • मैती आंदोलन के प्रणेता चमोली गढ़वाल निवासी श्री कल्याण सिंह रावत हैं। वे जीव विज्ञान के प्राध्यापक के साथ-साथ जल, जंगल और जमीन से जुड़े पर्यावरण प्रेमी थे। 
  • मैती आंदोलन की शुरुवात वर्ष 1995 से हुई। 
  • मैती आंदोलन का मुख्य उद्देश्य लोगों में भावनात्मक जुड़ाव पैदा कर पर्यावरण संरक्षण करना है।   

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मैती का अर्थ 

उत्तराखंड में मायके को 'मैत' कहा जाता है। वही मायका जहाँ बेटी पैदा होती है, जहाँ उसका बचपन बीतता है और लाड़-प्यार के साथ बड़ी हो जाती है। विवाह होने पर वह इस घर से विदा होकर पराये घर यानि ससुराल चली जाती है। तब उसका यह पूरा गांव या क़स्बा उसका 'मैत' कहलाता है। उसके पूरे गांव के लोग, पशु, पक्षी, पहाड़, नदियां सभी 'मैती' कहलाते हैं। मैती यानि 'मैत वाले' यानि 'मायके वाले'। मैत से बेटी का एक भावनात्मक लगाव रहता है। इसमें अपनापन और ढेर सारा लाड़-प्यार घुला रहता है। यहाँ तो मैत के अपनापन पर एक कहावत भी प्रचलित है। कहा जाता है 'आपण मैत क त कुकुर ले लाड़' यानि अपने मायके का तो कुत्ता भी प्यारा लगता है।  


मैती आंदोलन के प्रणेता 

मैती आंदोलन के प्रणेता/जनक श्री कल्याण सिंह रावत हैं  जिनके द्वारा वृक्षों को लगाने और उनके पोषण को लेकर भावनात्मक लगाव पैदा करने और इसे परम्परा बनाने का प्रयास श्रेय जाता है। उनकी सोच थी कि पर्यावरण रक्षा, वृक्षारोपण और उनके पालन-पोषण को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाए ताकि हम उसकी देखभाल अच्छी तरह से कर सकें। इसके लिए कल्याण सिंह रावत के द्वारा विवाह के अवसर पर नवदम्पति द्वारा वृक्षारोपण की परम्परा को चुना। 

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मैती आंदोलन की शुरुवात 

मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह रावत सीमान्त चमोली जनपद में चिपको आंदोलन की सफलता से प्रभावित थे और पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ नया करना चाहते थे। जल, जंगल और जमीन से जुड़े श्री रावत सरकार द्वारा किये जा रहे असफल प्रयासों से बेचैन थे। हर साल लाखों पौधे लगाए जाते थे लेकिन परिणाम शून्य था। उन्होंने विचार किया कि यदि पर्यावरण बचाने के इस प्रयास को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाये तो यह अभियान सफल हो सकता है। जिसकी प्रेरणा उन्हें उनकी पत्नी द्वारा विवाह के बाद लगाए गए दो पपीतों के पौधों से मिल चुकी थी। वे दो पौधे जो देखरेख से जल्दी ही फल देने लग गए थे। इन पेड़ों के प्रति अपनी पत्नी के भावनात्मक जुड़ाव ने उनके मन में मैती आंदोलन का जन्म दे दिया था। 

पहली बार वर्ष 1995 में अपने विचारों को अमलीजामा पहनाने के लिए शिक्षक कल्याण सिंह रावत द्वारा कुमाऊँ और गढ़वाल के कुछ गांवों में मैती संगठन की नींव रखी। तब वे इंटर कॉलेज ग्वालदम में जीव विज्ञान के प्रवक्ता थे। मैती संगठन की गतिविधियों को देखकर लोगों में इसके प्रति आकर्षित होने लगे और धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में इस संगठन की लोकप्रियता बढ़ने लगी। इसी लोकप्रियता के दम पर अपनी सीमाओं को लांघते हुए एक कुशल शिक्षक की सोच 'मैती आंदोलन' के रूप में पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय होने लगी है। 

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इन हस्तियों ने सराहा है मैती आंदोलन को 

मैती आंदोलन को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सराहा गया है। वहीं आशा सेठ (मदन मोहन मालवीय की पौत्री), हमीदा बेगम (उत्तर प्रदेश की तत्कालीन वित्त मंत्री सैयद अली की पुत्री), उत्तराखंड की राज्यपाल श्रीमती मार्ग्रेट अल्वा, कनाडा की तत्कालीन वित्त मंत्री तथा कुछ समय तक प्रधानमंत्री रह चुकी फ्लोरा डोनाल्ड, कनाडा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर माया चड्डा मैती आन्दोलन की सराहना कर चुके हैं। इसके अलावा देश के विभिन्न प्रदेशों के लोग मैती आंदोलन से प्रेरित होकर विवाह होने पर पौधरोपण करते हैं। वहीं इंडोनेशिया में कानूनन शादी से पहले नव दंपति का एक पेड़ लगाना आवश्यक होता है। 

यह थी उत्तराखंड के एक पर्यावरणीय आंदोलन 'मैती' पर एक छोटी सी जानकारी। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से जूझ रहे पूरे विश्व में आज इस प्रकार के भावनात्मक विचारों से प्रेरित आन्दोलनों को आगे बढ़ाने की जरुरत है। ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे।