जी रया जागी रया lyrics और इसका अर्थ।
जी रया जागी रया .... |
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र कुमाऊँ, गढ़वाल या जौनसार के निवासी अपनी संस्कृति और परम्पराओं का निर्वहन करते हुए आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। यहाँ विभिन्न प्रकार के त्यौहार, मेले, सांस्कृतिक गतिविधियां, पूजा पद्धतियाँ पुरखों के ज़माने से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार ही बड़े हर्षोल्लास और उमंग के साथ संपन्न की जा रही हैं। इन्हीं परम्पराओं में कुमाऊँ के पर्वतीय अंचल में 'जी रया, जागी रया' जैसे आशीर्वचनों से पर्व पूजन और शुभकामना प्रेषित की जाती हैं। आइये जानते हैं क्या हैं ये आशीष के शुभ वचन -
जी रया, जागी रया, यो दिन-यो बार भ्यटनै रया... ये शुभ आशीष कुमाऊँ में मुख्यतः हरेला, बसंत पंचमी और द्वितीया त्यौहार (भैया दूज) के अवसर पर दिए जाते हैं। हरेला पर्व पर अनाज से उगे हरेले से पूजन होता है। द्वितीया त्यौहार पर च्यूड़े और दूर्बा (दूब घास) और बसंत पंचमी/सिर पंचमी को जौ के नवीन पौधों से पूजन करते हुए ये आशीर्वचन दिए जाते हैं।
सर्वप्रथम अपने ईष्ट देवों को परम्परानुसार पूजन सामग्री अर्पित की जाती हैं। फिर घर की वरिष्ठ महिला सभी को इन आशीष के वचनों के साथ पूजन कर शिरोधारण करवाती हैं अथवा बेटियां भी इस परम्परा को निभाती हैं। पैर, घुटने और कंधे पर हरेले के तिनड़े, दूर्बा या जौ के पौधे छुवाते हुए निम्नांकित आशीर्वाद के साथ सिर पर रखती हैं।
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जी रया जागी रया lyrics
जी रया, जागि रया,
स्याव जसि बुद्धि है जौ,
घरती जस चाकव,
दुबकि जस जड़,
जी रया, जागि रया।
जी रया, जागी रया का अर्थ :
- लाग हर्याव, लाग दशैं, लाग बग्वाव का अर्थ है : आपको हरेला शुभ हो। आपको दशमी शुभ हो, आपको बग्वाली शुभ हो
- जी रया, जागि रया का अर्थ है- आप जीते-जागते रहना।
- य दिन,य महैंण कैं भ्यटनै रया यानि आपके जीवन में यह दिन और यह महीना हर बार आता रहे।
- स्याव जसि बुद्धि है जौ -आप स्यार (लोमड़ी) की तरह चतुर हों।
- स्युं जस तराण ऐ जौ - आप सूर्य के समान तेजस्वी हों।
- घरती जस चाकव, आकाश जस उच्च है जाया : आप धरती के बराबर चौड़ा और आसमान के बराबर ऊँचा हो जाना यानि आप पूरे विश्व में अपना कीर्तिमान स्थापित करें।
- दुबकि जस जड़, पाती क जस पौव है जौ : आपकी जमीन पर दूब (घास) के समान मजबूत पकड़ हो और पाती के पौधे की तरह आप नित्य पल्लवित होते रहें।
- हिंवाव में ह्युं छन तक, गंगज्यू में पाणी छन तक : हिमालय में बर्फ रहने तक और गंगा जी में पानी रहने तक तुम जीवित रहना। तुम जीते-जागते रहना।
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उत्तराखंड वासियों ने सैदव प्रकृति के साथ रहकर उसका सम्मान किया है। उनके तीज-त्यौहार अधिकतर प्रकृति से ही जुड़े हुए हैं। उपरोक्त पंक्तियाँ भी मानव के प्रकृति से जुड़ाव को दर्शाती हैं।
यह थे उत्तराखंड के कुमाऊँ की संस्कृति के आशीष वचन के बोल और उसके भाव। यहाँ इन आशीर्वचनों को पोस्ट करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि हम अपनी परम्पराओं को अन्य सभी लोगों से परिचित करवायें जो यहाँ की संस्कृति से लगाव रखते हैं या यहाँ की जड़ों से जुड़े हैं।