Harela Festival 2024: मानव और पर्यावरण के अंतर-संबंधों का अनूठा पर्व।

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Harela Festival Uttarakhand


देवभूमि, तपोभूमि, वीरभूमि जैसे कई नामों से विभूषित सुरम्य प्रदेश उत्तराखंड अपने धार्मिक स्थलों, पर्यटक स्थलों के अलावा विशिष्ट लोक संस्कृति और परम्पराओं से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। प्रकृति के गोद में बसे इस प्रदेश के रहवासियों ने अपनी परम्पराओं को जीवित रखते हुए सदैव प्रकृति का सम्मान किया है। उनकी परम्परायें, संस्कृति और तीज-त्यौहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं। इन्हीं में मानव और पर्यावरण के अंतर संबंधों का अनूठा पर्व है 'हरेला' जो हरियाली, सम्पन्नता, पशु प्रेम और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता है।  

हरेला त्यौहार मुख्यतः उत्तराखंड में मानसखंड यानि कुमाऊँ के प्रमुख पर्वों में से एक है। जिसमें लोग इस पर्व से 9 दिन पूर्व अपने घर में 7 प्रकार के अनाजों की बुवाई पारम्परिक तरीके से एक छोटी टोकरी में करते हैं। ये सभी अनाज अंकुरित होकर टोकरी में उग आते हैं। इसी को स्थानीय लोग 'हरयाव' अथवा हरेला कहते हैं। इस हरेले को पतीसकर यानि काटकर आशीर्वचनों के साथ शिरोधार्य करवाते हैं। लोग इस दिन को वृक्षारोपण दिवस के रूप मनाते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में पेड़-पौधों का रोपण करते हैं। इस पर्व की महत्ता को देखते हुए लोग अब पूरे उत्तराखंड में इस पर्व को मनाया जाने लगा है। 

हरेला पर्व हिंदी माह सावन की प्रथम तिथि, जिसे कर्क संक्रांति के नाम से भी जानते हैं को मनाया जाता है। अन्य लोकपर्वों की भांति यह पर्व भी बड़े हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। पारम्परिक तरीके से घर में बोये हरेले तिनड़ों को इस आशीष के वचनों के साथ शिरोधारण करवाया जाता है - 

लाग हर्याव, लाग दशैं, लाग बग्वाव।
जी रया, जागि रया, य दिन,य  महैंण कैं भ्यटनै रया।
स्याव जसि बुद्धि है जौ, स्युं जस तराण ऐ जौ।
घरती जस चाकव, आकाश जस उच्च है जाया।
दुबकि जस जड़, पाती क जस पौव है जौ।
हिंवाव में ह्युं छन तक, गंगज्यू में पाणी छन तक
जी रया, जागि रया

धार्मिक महत्व: 

हरेला पर्व को पूर्ण विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। इसकी बुवाई, स्थान, नित्य सिंचाई, गुड़ाई का समय, कटाई पूरे रीति-रिवाजों के साथ किया जाता है। इस अवसर पर शिव परिवार के डिकारे बनाकर उनकी पूजा -अर्चना की जाती है। पारम्परिक आशीर्वचन 'जी रये, जागि रये....' नयी पीढ़ी को अपने संस्कारों और पुरातन संस्कृति और धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ते हैं।     

वैज्ञानिक महत्व: 

हरेला मुख्यतः उत्तराखंड में कृषि से जुड़े लोगों के लिए वैज्ञानिक महत्व का भी पर्व है। वे हरेला बोकर अपने खेत की उर्वरा शक्ति, बीज की गुणवत्ता और उस वर्ष होने वाली पैदावार का सटीक पता कर लेते हैं। जिसके परीक्षण के लिए वे हरेला बोने के लिए अपने खेत की मिट्टी और घर में रखे बीज का उपयोग करते हैं। टोकरी में उगे हरेला की गुणवत्ता से कृषक वर्ग मिट्टी, बीज और पैदावार का अनुमान लगा लेते हैं। वहीं इस अवसर पर लोग अपने आसपास, खेतों, खाली जमीन पर वृक्षारोपण करते हैं। जिसमें फलदार पौधे, छायादार पेड़ और चारापत्ती वाले पेड़ होते हैं। जो हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करते हैं। 

हरेला प्रकृति के प्रति हमारे पूर्वजों की संवेदनशीलता और जागरूकता को दर्शाता है जो आज के समय में अपरिहार्य हो गया है कि प्रकृति को हरा भरा रखना कितना जरूरी है। इसी के साथ हमारी संस्कृति, आस्था और मर्यादा का बेजोड़ उदाहरण है। ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में हरेला पर्व पूरे विश्व में पहुंचना चाहिए और अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर इस लोकपर्व के सन्देश को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं। 

चारों तरफ हरियाली रहे 
हर घर में खुशहाली रहे
जगमगाए मेरा पहाड़
साल भर यहां दिवाली रहे
हर घर में धिनाली रहे
खेतों में अनाज की बाली रहे
साल भर रहे त्योहारों कि रौनक
हर चेहरे पर लाली रहे
लौट आऐं लोग फिर गांव अपने
किसी दरवाजे पर न ताली रहे 
बस एक ही आरजू है मेरी
तुमको अपने गांव कि नराई लगे।।
हरेला की शुभकामनायें। 

  • हरेला पर श्री शंकर जोशी जी 'पनुवां' की पंक्तियाँ। 

गढ़वाल में हरेला:

केदारखंड यानि गढ़वाल के अधिकांश क्षेत्रों में हरेला 'म्वोळ संक्रांद' के नाम से मनाई जाती है। यहाँ सावन महीने के पहले दिन की सुबह लोग म्वोळ के टहनियों को कुणजा घास के साथ अपने गौशालाओं से निकली गोबर के ढेरों में रोपते हैं। उसके बाद लोकगीतों के साथ पूजा अर्चना के बाद सत्तू अर्पित करते हैं। इसी क्रम को जारी रखते हुए इन टहनियों को अपने धान के खेतों में रोपी जाती हैं और प्रकृति से मवेशियों, खेतों, अन्न-धन की बरकत की कामना की जाती है। वहीं कुछ क्षेत्रों में कुल देवताओं के मंदिरों में जौ की हरयाली उगाई जाती है और हरियाली देवी को अर्पित की जाती हैं। 

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हैप्पी हरेला 


Harela Festival 2024 Date: इस साल उत्तराखंड में हरेला त्यौहार मंगलवार, दिनांक 17 जुलाई 2024 यानि सावन 1 गते 'कर्क संक्रांति' को मनाया जायेगा। इससे पूर्व दिनांक 7 जुलाई 2024 को हरेला की बुवाई की जाएगी।  नवमी तिथि 15 जुलाई को डिकर पूजा और हरेले की गुड़ाई की जाएगी। दशमी तिथि को 'हरेला' पतीसा जायेगा और अपने ईष्ट देवों को हरेला चढ़ाकर घर की वरिष्ठ महिलायें आशीर्वचनों के साथ हरेला शिरोधारण कराएंगी।