हिमशिखरों के बीच एक खूबसूरत स्थल - मां आनन्देश्वरी दुर्गा मंदिर।

aanandeshwari temple himalaya
15000 फ़ीट की ऊंचाई पर हिमशिखरों के बीच खूबसूरत मंदिर। 

उत्तराखंड स्थित बागेश्वर जिले के सुन्दरढूंगा ग्लेशियर रेंज में जहां सुंदर वादियां तथा ऊंचे-ऊंचे हिमशिखरों से आच्छादित पर्वतमालाएं हैं वहीं आध्यात्म के पवित्र प्रतीक इस पर्वतमाला में बसे हैं। यह पर्वतमालाएं मां आदिशक्ति मां नंदा जी को समर्पित हैं। इन पर्वतमालाओं में मां के साथ अन्य देवी-देवताओं का वास है। इन पवित्र पर्वतमालाओं में एक मुख्य स्थान है देवीकुंड, जहाँ हाल ही में कुंड के समीप 'मां आनन्देश्वरी दुर्गा' का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था, दृढ़ संकल्प और कठिन परिश्रम से बनकर तैयार हुआ है। 

हिमालय के कठोर पत्थरों को तरास कर पर्वतीय शैली में तैयार किया गया 'मां आनन्देश्वरी दुर्गा' का यह मंदिर समुद्र सतह से करीब 15000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। जिसकी नींव 23 जून 2024 को रखी गई थी। सुप्रसिद्ध देवी कुंड के समीप बना यह मंदिर देवी आनन्देश्वरी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर सर्वाधिक ऊंचाई पर बना जनपद का पहला देवी मंदिर है।  

यह मंदिर बालयोगी स्वामी चैतन्य आकाश जी महाराज की प्रेरणा से मल्ला दानपुर के ग्रामीणों के प्रयासों से तैयार हुआ है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले हिमालयी क्षेत्र में तैयार यह मंदिर हिमशिखरों, बुग्यालों और यहाँ खिले माँ नंदा देवी के प्रिय ब्रह्मकमल के फूलों के मध्य बेहद आकर्षक है। पास के देवीकुंड में मंदिर का प्रतिबिम्ब बेहद ख़ास और मनमोहक लगता है। 9 जुलाई 2024 से मंदिर में पूजा-पाठ, हवन के साथ अनुष्ठान कार्य प्रारम्भ हो गए हैं।

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मंदिर निर्माण के दौरान दिखा स्वास्तिक पर्वत:

सुन्दरढूंगा ग्लेशियर क्षेत्र में बने इस मंदिर के नींव रखने के दौरान सामने पर्वत चोटी पर एक दुर्लभ दृश्य लोगों को नजर आया, वह था बर्फ से बनी 'स्वास्तिक चिन्ह' की आकृति। जो पिथौरागढ़ जिले में स्थित ॐ पर्वत की भाँति बर्फ से स्पष्ट और साफ़ नजर आ रहा है। यह क्षेत्र बेहद दूर और लोगों की पहुँच से दूर होने के कारण स्वास्तिक पर्वत किसी को नजर नहीं आ पाया था।          

devi kund and temple
देवी कुंड में बना एक खूबसूरत प्रतिबिंब। 

निशुंभ दैत्य के वध के बाद माँ ने यहाँ किया था स्नान:

इस मंदिर के देवी कुंड के समीप होने पर इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। देवीकुंड का महत्व क्षेत्र की दंत कथाओं और लोक कथाओं में मिलता है। मान्यता है कि जब मां आदिशक्ति भगवती बदियाकोट में निशुंभ दैत्य का वध कर स्नान करने हेतु बदियाकोट, सोराग, वाछम, जातोली, केलुबाड़ा होते हुए चाखुड़ीजाबर पहुंची और कुंड निर्माण करना प्रारंभ किया। तभी दूर शंभू ग्लेशियर के मैदानों में चर रही एक भेड़ ने चाखुड़ीजाबर में कुंड ना बनाने का अनुरोध किया। तब माता नाग कुंड की ओर आगे बढ़ी और नाग कुंड का निर्माण शुरू किया। वहां नाग देवता ने माता से आग्रह कर उस कुंड को अपने लिए मांग लिया। तब अंत में माता वर्तमान में जहाँ देवी कुंड है के पास पहुंची और कुंड का निर्माण कर उसमें स्नान किया। यही कुंड वर्तमान में 'देवी कुंड' के नाम से जाना जाता है। 

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पर्यटन नहीं तीर्थाटन: 

देवीकुंड यहाँ बसे लोगों का ही नहीं वरन सनातन धर्म में अपनी आस्था रखने वालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमें यह ध्यान भी रखना होगा कि हम उस पवित्र धाम की पवित्रता को बनाए रखें तथा उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, रीति-रिवाज को देखते हुए सबको लेकर आगे बढ़ें। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि जहां चार दिन की नंगे पैर पैदल तथा एक वक्त का भोजन कर नियमानुसार भक्तजन (धामी) उस पवित्र स्थान तक पहुंचते हैं, हम उसकी आस्था और गरिमा को बनाये रखने में अपना योगदान देंगे। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह पवित्र क्षेत्र पर्यटन के लिए नहीं अपितु तीर्थाटन के लिये हो। जिससे वहां की पवित्रता बनी रहे। किसी भी दृष्टि से पवित्र स्थान की पवित्रता, रीति रिवाज, संस्कृति से हुई छेड़छाड़ से क्षेत्र तथा इससे जुड़े लोगों हेतु बहुत दूरगामी परिणाम होंगे जिसके जिम्मेदार वो स्वयं होंगे।

नोट : दंतकथाओं से जुड़ी बातें माँ आदिबद्री बदियाकोट के फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।