स्वास्तिक पर्वत भी है उत्तराखंड में ! यहाँ दर्शन करें -

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Swastik Parvat-Uttarakhand

उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के सुन्दरढूंगा घाटी स्थित देवी कुंड के सामने वाले हिम शिखर पर ॐ पर्वत की भांति बर्फ से बनी 'स्वास्तिक' की आकृति नजर आयी है। लोग इसे 'स्वास्तिक पर्वत' ( Swastik Parvat) कह रहे हैं। बर्फ से ढके पर्वत पर बर्फ के पिघलते ही यह आकृति बेहद साफ़ और स्पष्ट नजर आ रही है। वही स्वास्तिक जिसे भारतीय संस्कृति में पुराकाल से ही मंगल प्रतीक माना जाता है और किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पहले स्वस्तिक को अंकित करके उसकी पूजा की जाती है। 

इन दिनों देवी कुंड के पास माँ आनन्देश्वरी दुर्गा मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ है। जहाँ माता की अष्टधातु की मूर्ति स्थापित होनी है। देवी के मंदिर की नींव रखते हुए पूजा के दौरान सामने पहाड़ी पर लोगों को बर्फ से बने मंगल प्रतीक 'स्वास्तिक चिन्ह' के दर्शन हुए। यहाँ पहुंचे लोगों ने इसे शुभ का प्रतीक माना है। वहीं हिमालयी क्षेत्र में 15 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर बनने वाला नंदा देवी का पहला मंदिर होगा। 


स्वास्तिक पर्वत - देवी कुंड क्षेत्र बागेश्वर 

सुन्दरढूंगा ग्लेशियर घाटी में स्वास्तिक पर्वत का यह क्षेत्र बेहद ही निर्जन है। जो अधिकतर बर्फ से ढका रहता है।गर्मियों और बरसात के दौरान यहाँ सिर्फ अनवालों (चरवाहों) के अलावा कोई नहीं रहता है। जन शून्य होने के कारण 'स्वस्तिक पर्वत' लोगों  के नज़रों से दूर रहा है। लेकिन अनवालों को इस क्षेत्र में अनेक ऐसे दृश्यों और शक्तियों का आभास होता है, जिसे वे अपने तक ही सीमित रखते हैं। देवी मंदिर के नींव रखते हुए लोगों को स्वस्तिक पर्वत के दर्शन हुए हैं। वे इसे देवी का चमत्कार मानते हैं। वैसे भी इस क्षेत्र को धार्मिक धरोहर का स्थान प्राप्त है।  


कहाँ है देवी कुंड 

'देवी कुंड' हिमालय की तलहटी पर विश्व प्रसिद्ध सुन्दरढूंगा ग्लेशियर के पास है। जिला मुख्यालय बागेश्वर से यहाँ की दूरी करीब 100 किलोमीटर है। मखमली बुग्यालों के बीच स्थित यह कुंड देवी नंदा को समर्पित है। भाद्रपद माह में नंदा देवी पूजा के लिए भक्तगण यहाँ आकर पवित्र जल और कुंड के चारों ओर खिले ब्रह्मकमल के फूल लेकर जाते हैं। जिसे मां नंदा को पूजा के दौरान अर्पित किया जाता है। 

devi kund (nanda Kund)
Devi Kund (Nanda Kund)

देवी कुंड की लम्बाई करीब 110 मीटर और चौड़ाई 50 मीटर के आपसपास है। सर्दियों में कुंड समेत पूरा क्षेत्र बर्फ से आच्छादित रहता है। गर्मियों में बर्फ पिघलने पर कुंड के चारों ओर सुन्दर घास के मैदान नजर आने लगते हैं। जिसमें विभिन्न प्रकार के हिमालयी फूल खिले रहते हैं, वहीं अमूल्य जड़ी-बूटियों का भण्डार भी यहाँ उपलब्ध रहता है। कुंड में दिखाई देने वाला प्रतिबिम्ब यहाँ आने वाले हर प्राणी को अपनी ओर आकर्षित करता है।   


कैसे पहुंचे 

देवी कुंड क्षेत्र तक पहुँचने के लिए सौंग, लोहारखेत होते हुए खाती तक वाहन से आने के बाद करीब 30  किलोमीटर की दुर्गम पैदल यात्रा करनी होती है। जातोली, कठलिया, बलूनी टॉप से होते हुए देवी कुंड तक पहुंचा जाता है। खाती गांव से जातोली के बीच की दूरी 7 किलोमीटर, जातोली से कठलिया की दूरी 11 किलोमीटर, कठलिया से  बलूनी टॉप की दूरी 5 किलोमीटर और बलूनी टॉप से देवी कुंड की दूरी 7 किलोमीटर है।   

एक और कुंड है इस क्षेत्र में जिसके बारे में पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएँ - प्रकृति की अनमोल धरोहर - नंदा कुंड