मुनस्यारी के दर्शनीय स्थल और पर्यटन विभाग से प्रशिक्षित गाइड।
मुनस्यारी (Munsyari) जोहार परगने का मुख्य स्थल, सुदूर जनपद पिथौरागढ़ का अंतिम तहसील जिसकी उत्तरी सीमा महान हिमालय भारत-तिब्बत (चीन) से लगा भू-भाग है और समुद्रतल से ऊंचाई 2290 मीटर एवं दक्षिण गोरी नदी से के तट से 2400 मीटर है। प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर रमणीक हिमालयी क्षेत्र यहां आने वाले देश-विदेश के पर्यटक सामने पंचाचूली हिमपर्वत के मनमोहक दृश्यावलोकन से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
मुनस्यारी के व्युत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि यह स्थल शाक्यमुनि की तपस्थली भी रहा है, इसलिए इसको पूर्व में "मुनि का सेरा" भी कहा जाता था। जिसका विकास 'मुनस्यारी' के रूप में हो गया है। तहसील मुख्यालय को पहले 'तिकसैन' के नाम से भी जानते थे।
जोहार के शौकाओं के व्यवसायी तरीके से सारा संसार, आधा मुनस्यार भी कहा जाता रहा है। मुनस्यारी पहुंचने पर पंचाचूली, राजरंभा हिमपर्वत, हंसलिग चोटी, गोरी गंगा के चित्ताकर्षक दृश्य के अलावा डानाधार में मां नंदा देवी मंदिर स्थल भी अति मनभावन है।
पर्यटन मुनस्यारी भ्रमण में आने के लिए तीन मोटरमार्ग में से किसी एक का चुनाव कर सकते हैं। पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय से कनालीछीना,ओगला, अस्कोट, जौलजीबी, बरम, बंगापानी, मदकोट फिर मुनस्यारी। दूसरा मार्ग अल्मोड़ा,कौसानी, बागेश्वर, भराड़ी, सामाधूरा, क्वीटी,बिर्थी, मुनस्यारी। तीसरा मार्ग अल्मोड़ा, सेराघाट, बेरीनाग, थल, नाचनी, क्वीटी, बिर्थी,मुनस्यारी। पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय से मुनस्यारी की दूरी 120 किमी तथा अल्मोड़ा से लगभग 216 किमी दूरी है।
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मुनस्यारी पर्यटन पर आने वाले सैलानी यहां के सौन्दर्य के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक लोकजीवन, कला, इतिहास को जानने की जिज्ञासा भी रखते हैं। शौका जनजातियों के ऐतिहासिक धरोहर की वस्तुएं, लोकसाहित्य पुस्तकें मुनस्यारी से लगभग 1.5 किमी की दूरी पर अवस्थित ट्राइबल हेरिटेज मेमोरियल म्यूजियम नानासेम जैंती गांव में अवस्थित है। जिसकी स्थापना इतिहासकार डा0 शेर सिंह पांगती जी द्वारा की गई है, देखने को मिल जायेगा। मुनस्यारी के मुख्य पर्यटन स्थल तक पहुंचने तथा तथा समस्त जानकारी हेतु प्रशिक्षित अनुभवी गाइड की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। अपने अनुभव व विषय ज्ञान रखने वाले राजू गाइड की विशेषता है।
परिचय : राजू गाइड उर्फ श्री राजेन्द्र सिंह मर्तोलिया निवासी टकाना, दरकोट जिसकी दूरी तहसील मुख्यालय से 5 किमी मोटरमार्ग पर है। जिन्होंने अपने जीवनकाल के 25 वर्ष सैलानियों के साथ गाइड रूप में व्यतीत कर दिया है और वे उत्तराखंड के पर्यटन विभाग से प्रशिक्षित भी हैं।
मदुभाषी, व्यवहार कुशल,कर्मठ बचपन से एक दूसरे के साथ मित्रभाव-स्वभाव की लालसा ने आंखिरकार गाइड बनने तक का सफर करा दिया है.प्रारंभ में मित्रता का शौक़ में शैलानियो को जगह -जगह ले जाकर बारीकी से समस्त जानकारीया भली-भांति कराते थे जो उनका निशुल्क कार्य था। धीरे -धीरे जिसे व्यवसायिक रूप में भी अपनाना पड़ा है।
राजू गाइड का परिवार आज भी अपने पैतृक कारोबार ऊनी वस्त्र बनाने के कार्य से जुड़े हुए हैं। शाल,पंखी, पश्मीना,थुलमा, कालीन, खरगोश के ऊन की टोपी आदि की उपलब्धता घर पर ही करा देते हैं स्वयं के निवास स्थान में होम -स्टे साफ स्वच्छ कमरों की उपलब्धता आधुनिक सुविधाओं के साथ है, जो अतिथि देव भव: व्यवसाय का हार्दिक स्वागत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है।
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पर्यटकों का भ्रमण पर आने का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक सौन्दर्य का लुप्त उठाना तथा अपने अवकाश के समय का भरपूर सदपयोग कर मनोरंजन करना भी है। मनोचित्त में शांति लाकर जीवन को स्फूर्तिवान बनाना भी होता है। पर्यटन पर आये सैलानियों का क्षेत्र के लोकजीवन, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक सांस्कृतिक स्थिति को भी समझने की जिज्ञासा भी होती है जिस कारण उपयुक्त गाइड का चुनाव आवश्यक है।
मुनस्यारी के दर्शनीय स्थल :
मुख्य पर्यटन स्थल खलिया चोटी से हिम श्रृंखलाओं का विहंगम दृश्य तथा रमणीक वादियों का दृष्टिगोचर होना और मार्ग में अन्वेषक सीआईए नैन सिंह रावत पर्वतारोहण संस्थान का भी आकर्षण है। बेटूलिधार मोटर मार्ग से 2 किमी की दूरी पर थामडीकुण्ड का रहस्यात्मक कहानी। बेटुलीधार के पास ही पाताल थोड (अस्थाई प्रवास स्थल) में आधुनिक युको पार्क, सम्प्रति तहसील मुख्यालय के सामानांतर लगभग 1.5 किमी की दूरी पर स्थित मां नंदा भगवती स्थल तथा प्रतिष्ठापित होने की प्राचीन गाथा, जहां से ही घाटी में सर्पिली गोरी नदी बेसिन की पौराणिक गाथाएं, गोरी गंगा पार चूलकोट चोटी, जहां मुस्यारी से मदकोट के मोटर मार्ग से पहूंचा जा सकता है। चूलकोट में निवास करने वाले मुनस्यारी के मूल जनजाति बरपटिया समुदाय के चूलकोटिया रजबारी रहस्य।
मुनस्यारी से 5 किमी की दूरी दरकोट गांव में मां भगवती दुर्गा देवी के प्रतिष्ठापित मंदिर का रहस्य व स्थापत्य कला के भव्यता का दर्शन, प्राचीन काल के मंदिर मेसर देवता (यक्ष) द्वारा बरपटिया समाज के एक उपजाति बर्नियाओं की रूपवती कन्या अपहरण की रोचक कथा। सुनपति शौका जोहार के इतिहास पुरुष के वस्तुओं का शिलाखंड - भेड़ -बकरी, नारी अंग वस्त्र (घागरा), करबछ के थैलों का चट्टा (दो मुंह वाले भरे सामानों का ढेर) कुत्ता शिलाखंड का दृश्य सुनपति शौका के निवास स्थान पिलोखान, सुरिंग चोटी से दूर बुग्यालों के बीच अवस्थित है।
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मुनस्यारी से 10-15 किमी दूरी पर क्वीरीजिमियां गांव के पास पश्चिम में गांव से लगभग 2-3 किमी दूरी घने जंगल के बीच देवल ढुङ ( भीमकाय पाषाण खंड तालाब के बीच मंदिर अवस्थित) चारों ओर जलकुंड भी है। मुनस्यारी से 25 किमी दूर गोरी गंगा व मंदाकिनी संगम के किनारे ऊष्म जलस्रोत, तल्ला दुम्मर में अवस्थित भीमकाय गोलाकार (ल्वांल ढुंङ) शिलाखंड जिससे सुनपति शौका के वंशजों की आस्था जुड़ी है। यहीं से कुछ दूर आगे सुरिनगाड में प्राकृतिक झरना स्थल है। इसके अलावा बिर्थी झरना जो मुनस्यारी से 30-35 किमी पूर्व बिर्थी गांव के पास मोटरमार्ग पर खूबसूरत झरना पर्यटकों के लिए मुख्यआकर्षण में एक हैं। मुनस्यारी नामिक, रालम, मिलम हिमानियों तक पहुंचने का अंतिम आधार शिविर भी है।
तो उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटक स्थल मुनस्यारी के भ्रमण पर जरूर आईये। हाँ ध्यान जरूर रखना यहाँ आकर आप कम से कम दो से पांच दिन तक अवश्य ठहरें और यहाँ के सौंदर्य, संस्कृति और स्थानीय स्वास्थ्यवर्धन भोजन का आनंद लें।
✍️ लेख : श्री जगदीश बृजवाल