बेडु पाको बारामासा: उत्तराखंड का गौरव।
"बेडु पाको बारामासा" उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोकगीत है। यह गीत कुमाऊंनी भाषा में है और इसे स्व. बृजेंद्र लाल शाह ने लिखा और मोहन उप्रेती और बृजमोहन साह द्वारा संगीतबद्ध किया है। गीत में पहाड़ों के प्रसिद्ध फल बेडु और काफल के पकने के समय (महीने) का वर्णन करते हुए एक नायक का अपनी नायिका/प्रेमिका से वार्तालाप का वर्णन है।
इतिहास:
यह गीत 1942 में लिखा गया था और पहली बार 1952 में नैनीताल के राजकीय इंटर कॉलेज में गाया गया था। गीत को मोहन उप्रेती और नईमा खान ने गाया था। गीत को बहुत लोकप्रियता मिली और यह उत्तराखंड का एक प्रतीक बन गया।
गीत का महत्व:
यह गीत उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है। गीत में कुमाऊंनी भाषा की सुंदरता का भी प्रदर्शन किया गया है। गीत ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
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विशेषताएं:
- गीत में पहाड़ के लोक फल बेडू और काफल पकने के महीनों का रोचक वर्णन है।
- गीत में प्रदेश के नंदा देवी मंदिर का चित्रण किया गया है।
- गीत में कुमाऊंनी भाषा की सुंदरता का प्रदर्शन किया गया है।
- गीत ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
गीत का प्रभाव:
यह गीत उत्तराखंड के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गीत लोगों को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है। गीत ने उत्तराखंडी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष:
"बेडु पाको बारामासा" उत्तराखंड का एक अमूल्य रत्न है। यह गीत उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। गीत ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।
यहां गीत के कुछ बोल दिए गए हैं:
- बेडू पाको बारा मासा,
- नरैण काफल पाको चैत मेरी छैला।
- रुणा भूणा दिन आया ,
- नरैण को जा मेरी मैता, मेरी छैला।
- अल्मोड़ै की नंदा देवी ,
- नरैण फुल चढूनी पाती, मेरी छैला।
- जैसी त्वीले बोली मारी ,
- ओह नरैण धन्य मेरी छाती मेरी छैला।
- जैसी त्वीले बोली मारी ,
- ओह नरैण धन्य मेरी छाती मेरी छैला।
- बेडू पाको बारो मासा ,
- ओ नरैण काफल पाको चैत मेरी छैला।
- नरैण को जा मेरी मैता, मेरी छैला।
यहां गीत के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दी गई है:
- यह गीत 1942 में लिखा गया था।
- यह गीत स्व. बृजेंद्र लाल शाह द्वारा लिखा गया था।
- यह गीत कुमाऊंनी भाषा में है।
- यह गीत लोकगीत शैली में है।
- यह गीत उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय हुआ।
- इस गीत को मोहन उप्रेती और नईमा खान ने गाया था।
- इस गीत को कई अन्य गायकों ने भी गाया है।
- यह गीत उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है।
- यह गीत ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है।