पिछौड़ा - सुहाग, शुभ और संस्कृति का प्रतीक।
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क्या है रंग्याली पिछौड़ा (Pichora)
गहरे पीले रंग की लाल बूटेदार ओढ़नी को उत्तराखंड में रंग्याली पिछौड़ा कहा जाता है। यहाँ पिछौड़ा को पवित्र और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। पिछौड़े लम्बाई करीब तीन मीटर और चौड़ाई सवा मीटर के करीब होता है। यह सूती या चिकन के कपडे का बना होता है। जिसमें ॐ, स्वस्तिक, शंख, घंटे, सूर्य, चन्द्रमा आदि की आकृतियां बनी होती हैं। सनातन धर्म के मान्यतानुसार ये सभी आकृतियां शुभ मानी जाती हैं।
परम्परागत पिछौड़े को मलमल या सूती कपड़े में कच्ची हल्दी, किल्मोड़ा की जड़ों और टेसू के फूलों से बनाये गए प्राकृतिक रंगों से रंगकर तैयार किया जाता है। इसीलिए इसे रंग्याली /रंगयाई पिछौड़ा अथवा रंगयाई पिछौड़ी कहते हैं। कुमाउँनी बोली में रंग्याली /रंगयाई का अर्थ है- रंगा हुआ।
अनंत-राधिका के प्री-वेडिंग में पिछौड़ा ओढ़े साक्षी धोनी। |
पिछौड़ा और कुमाउनी दुल्हन
उत्तराखंड के कुमाऊं में पिछौड़ा पहनाकर ही बेटी को ससुराल के लिए विदा किया जाता है। पीले सुनहरे परिधान पर लाल रंग से अंकित विभिन्न आकृतियों से सजे इस पवित्र पिछौड़े के साथ विदा कर सुखमय जीवन की कामनाएं की जाती हैं। वहीं इसका आकर्षण दुल्हन की वेशभूषा में चार चाँद लगा देता है। कहते हैं कि दुल्हन तो रंग्याली पिछौड़े में निखरती है। तभी तो किसी युवती को शादी के दिन ही पहली बार पिछौड़ा पहनाया जाता है। जानकार बताते हैं कि अतीत में पिछौड़ा दुल्हन को ही पहनाया जाता था। ताकि वह सबसे अलग दिखे। अब शादी से लेकर कोई भी शुभ काम में परिवार की सभी महिलाएं इसे पहनती हैं। समय के साथ-साथ पिछौड़े में भी बदलाव आया है। अब हाथ के बजाय बाजार के प्रिंटेड पिछौड़े ही ज्यादा चलते हैं। पिछौड़ा सनील और मदीन के घाघरे के ऊपर ही जमता है। अब साड़ियों में भी इसे पहना जाने लगा है। पिछले कुछ सालों में कुमाऊंनी पिछौड़े ने देश और दुनिया में भी खास जगह बनाई है।
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परिधानों में सर्वोच्च है पिछौड़ा
'पिछौड़ा' पहनने का मतलब ही खास है। यह बताता है कि जिस परिवार में समारोह है आप उस परिवार से हैं। सारे परिधानों में पिछौड़ा सर्वोच्च है तभी तो तीज त्योहार और शुभ कार्य में देवी को भी चढ़ाया जाता है। शुभ काम में पिछौड़ा गणेश पूजा के दिन से पहना जाता है। इसका मतलब इस दिन पीले रंग से रंगे जाने वाले कपड़ों से है। कुछ साल पहले तक गणेश पूजा के दिन पिछौड़ा घर पर ही बनाया जाता था।
पिछौड़े में प्रयुक्त हर चीज का है मतलब
पिछौड़ा उतना ही पुराना है जितना कि विवाह की परंपरा है। इसमें प्रयोग होने वाली हर चीज का मतलब होता है। यह सफेद कपड़े से बनाया जाता है, सफेद का मतलब शांति और पवित्रता से है। पीले रंग से प्रसन्नता और ज्ञान जुड़ा है जबकि लाल रंग श्रृंगार और वीरता से। खोड़ी में बनने वाले सूर्य से ऊर्जा, फूल से सुगंध और शंख और घंटी से देवताओं का आह्वान किया जाता है। रंगों में प्रयोग होने वाला बतासा कुमाऊं की मिठास घोलता है।
विरासत में मिली पिछौड़ा पहनने की परम्परा
पिछौड़ा शब्द से ही परम्परा और लोक पक्ष जुड़ा है। इसमें सुहाग और शुभ से संबंधित चीजें उकेरी होती हैं। पिछौड़ा पहनने और इसे बनाने का लिखित तौर पर कुछ नहीं है। यह ऐसी परंपरा है जो हमें विरासत में मिली है। बुजुर्ग महिलाओं के सानिध्य में नई पीढ़ी इस कला को सीखती थी। हाथ से पिछौड़ा बनाना कोई आसान काम नहीं है।
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अल्मोड़ा में बना पिछौड़ा सबसे बढ़िया
अल्मोड़ा में हाथ से बने पिछौड़े को सबसे अच्छा माना जाता है। भले ही बाजार में प्रिटेंड पिछौड़े खूब बिकते हैं पर कुमाऊंनी संस्कृति से लगाव रखने वाले लोग हाथ से बना पिछौड़ा ही पसंद करते हैं। यदि आपको हाथ से बने पिछौड़े खरीदने हैं तो आपको अल्मोड़ा चौक बाजार में कुछ चुनिंदा दुकानों पर उपलब्ध हो जायेंगे। (Kumaoni Pichora)
वर्तमान में रंग्याली पिछौड़ा
आज के डिजिटल युग में पिछौड़ा नए-नए डिज़ाइन के साथ बाजार में उपलब्ध है। प्राकृतिक रंगों की जगह सिंथैटिक रंगों से रंगा रंग्याली पिछौड़ा वर्तमान में पूरे उत्तराखंड की महिलाओं में लोकप्रिय बन गया है। दिल्ली, मुंबई, लखनऊ जैसे शहरों में उत्तराखंडी शादी समारोहों और विभिन्न कार्यक्रमों में पिछौड़ा पहनी उत्तराखंडी महिलायें आसानी से देखी जा सकती हैं। गैर उत्तराखंडी महिलायें भी इस रंग्याली पिछौड़ा की दीवानी हैं। (Kumaoni Pichora)
पिछौड़ा एक महिला के सुहाग, शुभ और संस्कृति का द्योतक है। इसका उपयोग सिर्फ मांगलिक कार्यों में ही फलदायी होता है। सभी को इसका सम्मान करना आवश्यक है।