Ku Dhungu Ni Puji Lyrics | को ढुंगो नि पुजि मील के लिरिक्स।
Ku Dhungu Ni Puji: को ढुंगो नि पुजि मील - गढ़रत्न श्री नरेंद्र सिंह नेगी द्वारा गाया प्रस्तुत मार्मिक गीत एक छोटे से गढ़वाली बच्चे की पीड़ा पर आधारित है जिसके माता-पिता का देहात बाल्यकाल में ही हो जाता है। जिस कारण एक छोटे से बच्चे को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। जिसका मार्मिक वर्णन इस गढ़वाली लोक गीत में है।
Ku Dhungu Ni Puji 'को ढुंगो नि पुजि मील' गीत का भावार्थ इस प्रकार है - अपनी व्यथा को सुनाते हुए लेखक कहते हैं मैंने किस पत्थर को नहीं पूजा, पेट के खातिर में कौन से जंगल नहीं भटका। मैंने क्या-क्या दुःख नहीं सहे, भाई आपको मैं क्या बताऊँ? बचपन से ही मेरे माता-पिता का देहांत हो गया। वे मुझे परायों के दहलीज पर भूखा-नंगा छोड़ गए। इस परिस्थिति में किसी ने मेरे न आंसू पोछे, न ही मुझे किसी ने अपना समझा। मैं दर-दर की ठोकरें खाते इधर से उधर भटकता रहा। मैंने बचपन में ही अपने इन कोमल हाथों से दूसरों के बर्तन धोये। इस दौरान मैं आधा पेट खाना खाकर भी जीता रहा और इन दुःखों और दर्द के बीच जल्दी बड़ा भी हो गया। सर्द रातों में मेरे पास ढकने के लिए न कम्बल थी और न ही चादर मेरे किस्मत में थी। बारिश, तूफानी और सर्द रातों में, माँ की गर्म गोद खोजता रहा मैं। अपनी व्यथा सुनाते हुए लेखक कहते हैं इस दुनिया को कौन रचता है, कौन हैं ये भाग्य रचयिता, इस प्रकार का न्याय एक अबोध बालक के साथ अपनी आंखें बंद करके कौन करता है?
Ku Dhungu Ni Puji Lyrics को ढुंगो नि पुजि मील गीत के बोल इस प्रकार हैं -
को ढुंगो नि पुजि मील, कै डांडा नि गौउं मी,
क्वा खैरी नि खाई भैजी, त्वेमा क्या लगौउं मी
( कौनसा पत्थर नहीं पूजा मैंने ? कौनसे जंगल नहीं गया मैं ?)
( कौनसा दुख नहीं सहा भाई, तुम्हें क्या बताऊं मैं ? )
बाळापन मा ब्वे बाब, मुख मोडी गैनि
बिराणी देल्यूं मा नांगू भुकु छोड़ी गैनि,
न आंसू पुझिन कैन न कैन बुथ्याउ मी!
क्वा खैरी नि खाई भैजी, त्वेमा क्या लगौउं मी ।
( बचपन में मां बाप, मुंह मोड़ कर चले गए )
( परायों की दहलीज पर, नंगा और भूखा छोड़ गए )
( न आंसू पोंछे किसी ने , ना किसी ने गले लगाया )
कुंगलि हाथ खुटि, उणेंदी आंख्यूं लेकि,
बिराणा भांडा मंजैनी, अध पेटु खैकि,
ये पेट का बाना, सरा सरि बडू हुयूं मी,
क्वा खैरी नि खाई भैजी, त्वेमा क्या लगौउं मी।
( कोमल हाथ पैर, और आधी नींद की आंखे लेकर )
( परायों के बर्तन साफ किए, आधे पेट खाकर )
( इस पेट की वजह से, जल्दी जल्दी बड़ा हो गया मैं )
न ढकेण न डिसाण, पूष मौ कि रात,
बरखा बत्वाणी भैजी, जंगळु कु वास,
माँजी कि निवाति कोळी, खोजदा रै ग्यौं मि,
क्वा खैरी नि खाई भैजी, त्वेमा क्या लगौउं मी।
( न चादर थी न बिस्तर, पौष( फरवरी) महीने की रात )
( बारिश– तूफान था भाई, जंगल का बसेरा भी )
( मां की गर्म गोद, खोजता रह गया मैं )
को रचलु ईं दुनिया, को लिखलु भाग,
को करदु होळु आँखा, बूजी कि निसाब,
लोग रवेनी पाण्या आँसू, ल्वे का आँसू रोऊं मी
क्वा खैरी नि खाई भैजी, त्वेमा क्या लगौउं मी।
( कौन रचता है ये दुनिया, कौन लिखता है भाग्य )
( कौन करता है आंख, बन्द कर के न्याय )
( लोग रोए पानी के आंसू, खून के आंसू ( दुःख भरे) रोया मैं )
( कौनसा दुःख नहीं सहा भाई, तुम्हें क्या बताऊं मैं ? )
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