Garhwali Mangal Geet Lyrics | गढ़वाली माँगल गीत के बोल

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Garhwali Mangal Geet

उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य, देवस्थलों के अलावा अपने ख़ास परम्पराओं और रीति-रिवाजों के कारण भी प्रसिद्ध है। यहाँ के कुछ ख़ास परम्पराओं में शुभ कार्यों पर गाये जाने वाले संस्कार गीत भी हैं जिन्हें कुमाऊँ में 'शकुन आँखर' (शकुनांखर)  और गढ़वाल में 'माँगल गीत' कहते हैं। इन संस्कार गीतों के माध्यम से शुभ कार्यों को संपन्न कराने के दौरान पौराणिक देवता गणेश, लक्ष्मी, शिव के साथ ही विष्णु अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, शेषावतार लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, लव-कुश समेत कई देवताओं के नाम लिए जाते हैं। देवस्मरण के बाद जिस घर में शुभ कार्य हो, उस परिवार के प्रत्येक व्यक्ति का नाम गीतों के माध्यम से ही पुकारते हुए सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। 

पिछले पोस्ट में हमने कुमाऊँ में गाये जाने वाले शकुन आँखरों को आपके लिए प्रस्तुत किये थे। यहाँ हम गढ़वाल में विवाह के दौरान गाये जाने वाले मांगल गीतों  (Mangal Geet) को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो इस प्रकार शुरू होते हैं- 

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माँगल गीत के बोल -

सगुन बोल

औ बैठ कागा हरिया बिरीछ 
बोल बोल कागा चौंदिसि सगुन 
बिचारा बरमा जी तैं कागा की बोली 
बेदमुखि  बरमा जी बेद पढ़ला 
सगुनी कागा सगून बोललो 
***


सगुन न्युतो गीत 

पिञ्जरी का सूवा अटारि का सूवा
दे औ सूवा तू स्वागिण्यूँ न्यूतो
सोना पंखी सूवा तू लाल ठोन्ट सूवा
दे औ सूवा तू स्वागिण्यूँ न्यूतो
जण्दो नि छौं मैं पछण्दो नि छौं मैं
कै घर कैं देबि न्यूतिकि औलो?
बरमा जी का घर होली साबित्री देबि
वे घर वीं देबि न्यूतिकि ऐई
बिस्णु जी का घर होली लछमि देबि
वे घर वीं देबि न्यूतिकि ऐई
सिवजी का घर होली पारबति देबि
वे घर वीं देबि न्यूतिकि ऐयी
दे औ सुवा तू स्वागिण्यूँ न्यूत

हल्दी बान गीत 

दे द्यावा दे द्यावा मेरा बरमा जी, दे द्यावा हल़दी का बान हे
जिया रेयाँ जिया मेरा बरमा जी, जौन दीनि हल़दी का बान हे
दे द्यावा दे द्यावा मेरी माँजी हे, दे द्यावा हल़दी का बान हे
जिया रेयाँ जिया मेरी बडी जी, जौन दीनि दै दूध का बान हे
दे द्यावा दे द्यावा मेरी चची जी, दे द्यावा घ्यू तेल़ का बान हे
जिया रेयाँ जिया मेरा पुफू जी, जौन दीनि चन्दन का बान हे
दे द्यावा दे द्यावा मेरी भाभी जी, दे द्यावा समोया का बान हे
दे द्यावा दे द्यावा मेरी दीदी जी, दे द्यावा कचूर का बान हे
दे द्यावा कचूर का बान हे... 
***

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मंगल स्नान गीत 

क्यान होये क्यान होये, कुण्ड कौज्याल़?
क्यान होये होलो सूरिज धूमैलो?
उबादेसु उबादेसु गौरा जी नहेन्दी
तब होये तब होये कुण्ड कौज्याल़
क्यान आई क्यान आई सिन्धु छलार?
क्यान होये होलो सूरिज धुमैलो?
नहेण लागी लछमी की लाडी
तब आये तब आये सिन्धु छलार
तब होये होलो सूरिज धुमैलो
क्यान होई क्यान होई, धौल़ी पिंगल़ी?
क्यान होये होलो सूरिज धुमैलो?
नहेण लागी सीता जी सरूपा
तब होई तब होई धौल़ी पिंगल़ी
तब होये होलो सूरिज धुमैलो
***

कपड़ा पैरवाण गीत 

न्हाई ध्वेकी, लाडी मेरी, फुरपूर्या ह्वेगे
पैर पैर, लाडी मेरी, रेसमी कपड़ी
बाबाजी तुम्हारा लैन बाजारू मोल्येकी
माँजीन तुम्हारी पिटारी सजैई
पैर पैर लाडी़ मेरी जरीन्द कपड़ी
बडाजी तुम्हारा लैन हाटन मोल्येकी
बडीजीन तुम्हारी पिटारी खोल्याली
पैर पैर लाडी मेरी मोत्युँ जड़ित कपड़ी
चचाजी तुम्हारा लैन देसून मोल्येकी
चचीजीन तुम्हारी पिटारी सजाई
न्हाई ध्वेकी, लाडी मेरी, फुरपूर्या ह्वेगे
***


धूलि अर्घ गीत 

को होलो मेरी धिया को जनीत?
कै द्योला आज धूलि़ अरघ?
जैका अंग होलो पीताम्बरी चोला
स्यूयी होलो तेरी धिया को जनीत
जणदो नि छौं मैं पछणदो नि छौं मैं
कै द्योला आज धूलि़ अरघ
जैका सिर होली सजीली पगड़ी
जैका अंग होलो झिलमिल जामो
जैका होला जैका होला कान कुण्डल
जैका होला जैका होला हाथू कंगण
तैई द्येण तैई द्येण धूलि़ अरघ
तैई द्येण आज संख की पूजा
जैका सिर होलो सोना को मुकुट
जैका अंग होली पीताम्बरी धोती
तैई द्येण आज धूलि़ अरघ
स्यूयी होलो तेरी धिया को बर
हेरी फेरी बइयाँ पकड़ ले
पैलो फेरो फेर लाडी, कन्या छै कुँवारी
दूजो फेरो फेर लाडी, ब्वे बाबु की प्यारी
हेरी फेरी बइयाँ पकड़ ले
तीजो फेरो फेर लाडी, भै बैण्यूँ की प्यारी
चैथो फेरो फेर लाडी, सौंजड़्यों की दुलारी
हेरी फेरी बइयाँ पकड़ ले
***

फेरा भौंरा

पाँचो फेरो फेर छोड़, ब्वे बाबू की गोद
छठो फेरो फेर छोड़, सौंजड़्या दगड़ो
सातों फेरो फेर लाडी, कन्या ह्वे तू नारी
राजी खुसी रै तू लाडी, सदा स्वागिण नारी
हेरी फेरी बइयाँ पकड़ ले.. 
***


बिदै (विदाई गीत )

काला़ डाण्डा पार बाबा काली़ च कुयेड़ी
यखुली यखुली लगली मैं डर
काला़ डाण्डा पार बाबा
पैली द्योलो लाडी त्वे सकिल जनित
तब द्योलो लाडी त्वे हाथी अर घोड़ा
यखूली नि भेजलो
***


उत्तराखंड लोकसंस्कृति में 'मांगल गीत' अथवा 'शकुन आंखर' एक ऐसी गीतमाला है जिसका मधुर संगीत वैवाहिक कार्यक्रमों के साथ ही कई अन्य आयोजनों में गूंजता रहा है। मांगल गीत भले ही पहाड़ की लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हो लेकिन वर्तमान समय में इन गीतों की जगह पाश्चात्य संगीत ने लिया है। पहाडों से लगातार होते गए पलायन के बाद मांगल गीत भी लुप्त होता गया। पहाड़ की लोकसंस्कृति की इन अनोखी विधा को संजोने का प्रयास हर किसी को अपने स्तर से करना आवश्यक है।