उत्तराखंड के राजकीय चिह्न और प्रतीक।

State Symbol of Uttarakhandउत्तराखंड राज्य 9 नवंबर 2000 को भारत के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। सन 2000 से 2006 तक यह राज्य उत्तराँचल के नाम से जाना जाता था। जनभावनाओं का सम्मान करते हुए 1 जनवरी 2007 से इस प्रदेश का आधिकारिक नाम उत्तराँचल से बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। यहाँ पग-पग में मौजूद मंदिरों और तीर्थ स्थलों की बड़ी संख्या होने के कारण प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड राज्य का उपनाम देवभूमि भी है। (State Emblem and Symbols of Uttarakhand )

उत्तराखंड राज्य स्थापना के बाद राज्य के लिए राजकीय चिन्ह, राजकीय पुष्प, राजकीय पशु, वृक्ष, फल, खेल आदि तय किये गए। यहाँ तक कि तितली की एक प्रजाति को भी उत्तराखंड ने अपने राज्य की राजकीय तितली को जगह दी है। आईये जानते हैं उत्तराखंड के राजकीय चिन्ह और प्रतीक के बारे में - 

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उत्तराखण्ड का राजकीय चिन्ह

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State Emblem of Uttarakhand

उक्त चिन्ह को उत्तराखण्ड के राजकीय चिन्ह के रुप में अंगीकृत किया गया, जिसमें ऊपर के पहाड़ हिमालय की विराटता को प्रदर्शित करते हैं और इसमें दिखाई गई चार लहरें गंगा की लहरें हैं। जो उत्तराखण्ड के पहाड़ों से निकल कर मैदानों को सिंचित कर उत्तराखण्ड की उदारता और हृदय की विराटता को प्रदर्शित करती हैं। इसके ऊपरी भाग पर बनी कलग़ी में लाल पृष्ठभूमि युक्त भारत का राष्ट्रीय चिह्न, अशोक की लाट आकृत है, जिसके नीचे संस्कृत में भारत का राष्ट्रीय उद्घोष, सत्यमेव जयते संलग्न है। राज्य-चिह्न के निचले भाग पर नीले रंग में "उत्तराखण्ड राज्य" अंकित है।

उत्तराखण्ड का राज्य पुष्प

ब्रह्म कमल (Saussurea obvallata)

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State Flower of Uttarakhand

ब्रह्म कमल उत्तराखंड का राजकीय पुष्प यानि फूल है। यह पुष्प उत्तराखण्ड में फूलों की घाटी, यहाँ के बुग्यालों, केदारनाथ-शिवलिंग क्षेत्र आदि स्थानों में बहुतायत में होता है। यह 3600 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। पौधे की ऊंचाई 70-80 सेंटीमीटर होती है। जुलाई और सितम्बर के मध्य यह फूल खिलता है और जहां पर वह खिलता है उसके आस-पास का क्षेत्र सुगन्धित हो जाता है। फूल के चारों ओर कुछ पारदर्शी ब्लैंडर के समान पत्तियों की रचना होती है। जिसको स्पर्श करने से ही इसकी सुगन्ध कई घण्टों तक अनुभव की जाती है, इस पौधे की जड़ों में कई औषधीय तत्व भी होते हैं।

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उत्तराखण्ड का राज्य पशु

 कस्तूरी मृग Musk deer (Moschus chrysogaste)

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State Animal of Uttarakhand

कस्तूरी मृग (Musk deer) उत्तराखंड का राजकीय पशु है। भारत में कस्तूरी मृग, जो कि एक लुप्तप्राय जीव है, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल के केदारनाथ, फूलों की घाटी, हरसिल घाटी तथा गोविन्द वन्य जीव विहार एवं सिक्किम के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है। हिमालय क्षेत्र में यह देवदार, फर, भोजपत्र एवं बुरांस के वनों में लगभग 3600 मीटर से 4400 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। कस्तूरी मृग की कंधे पर इसकी ऊँचाई 40 से 40  से.मी. होती है। इस मृग के सींग नहीं होते है तथा उसके स्थान पर नर के दो पैने दाँत जबड़ों से बाहर निकले रहते हैं। शरीर घने बालों से ढ़का रहता है। इसकी नाभि में कस्तूरी नामक एक ग्रन्थि होती है जिसमें भरा हुआ गाढ़ा तरल पदार्थ अत्यन्त सुगन्धित होता है। मादा वर्ष में एक या दे बार 1-2 शावकों को जन्म देती है। आम मृग से अलग इस प्रजाति के मृग संख्या में भी काफी कम हैं।

उत्तराखण्ड का राजकीय वृक्ष

 बुरांश (Rhododendron arboreum)

State-Tree-o- Uttarakhand

बुरांश को उत्तराखंड के राजकीय वृक्ष (State Tree of Uttarakhand) के रूप में लिया गया। यह मध्यम ऊँचाई का सदापर्णी वृक्ष है। यह हिमालय क्षेत्र से लगभग 1500 मीटर से 3600 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। इसकी पत्तियाँ मोटी एवं पुष्प घंटी के आकार के लाल रंग के होते हैं। मार्च-अप्रैल में जब इस वृक्ष में पुष्प खिलते हैं तब यह अत्यन्त शोभावान दिखता है। इसके पुष्प औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं जिनका प्रयोग कृषि यन्त्रों के हैन्डल बनाने तथा ईंधन के रुप में करते हैं। बुरांश पर्वतीय क्षेत्रों में विशेष वृक्ष हैं जिसकी प्रजाति अन्यत्र नहीं पाई जाती है।

घने हरे पेड़ों पर बुरांश के सुर्ख लाल रंग के फूल जंगल को जैसे लाल जोड़े में लपेट देते हैं। बुरांश सुंदरता का, कोमलता का और रूमानी ख्यालों का संवाहक फूल माना जाता है।  बुरांश में सौंदर्य के साथ महत्व भी जुड़ा है।  इन फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल के बारे में तो सब जानते ही हैं, पर्वतीय इलाकों में पानी के स्रोतों को बनाए रखने में इनकी बड़ी भूमिका है। 

उत्तराखंड का राजकीय पक्षी 

  • मोनाल ( Lophoorus Impejanus)

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हिमालयन पीकॉक (Himalayan Peacock) यानि हिमालय का मोर के नाम से विख्यात मोनाल को उत्तराखंड राज्य को राजकीय पक्षी है। इसके अलावा मोनाल नेपाल का भी राष्ट्रीय पक्षी है।  मोनाल अति सुन्दर और आकर्षक पक्षी है। यह ऊँचाई पर घने जंगलों में पाया जाता है। यह अकेले अथवा समूहों में रहता है। नर का रंग नीला भूरा होता है एवं सिर पर तार जैसी कलगी होती है। मादा भूरे रंग की होती है। यह भोजन की खोज में पंजों से भूमि अथवा बर्फ खोदता हुआ दिखाई देता है। कंद, तने, फल-फूल के बीज तथा कीड़े-मकोड़े इसका भोजन है। मोनाल उन पक्षियों में है जिसके दर्शन विशिष्ट स्थानों पर भी कम संख्या में होते हैं।

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उत्तराखंड का राजकीय फल 

  • काफल (Myrica Esculenta)

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State Fruit of Uttarakhand

उत्तराखंड का राजकीय फल काफल है। गुच्छों में लगने वाला यह छोटा सा गुठली युक्त फल है। पकने पर काफल गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। काफल का पेड़ करीब 4000 से 6000 फ़ीट की ऊंचाई पर हिमालयी राज्यों में पाया जाता है।  काफल का पेड़ एक सदाबहार पेड़ है। जो वर्षभर हराभरा रहता है। अप्रैल मध्य से मई माह के बीच काफल के फल पकने लगते हैं। खट्टे-मीठे स्वाद से युक्त काफल पौष्टिक फल है। काफल के पेड़ की पौध उगा पाना मुश्किल होता है।  जंगलों में काफल के पेड़ स्वतः ही उगते हैं। वर्तमान में काफल के पेड़ दुर्लभ पेड़ों की श्रेणी में गिने जाने लगे हैं। 


उत्तराखंड की राजकीय मिठाई

  • बाल मिठाई  (Bal Mithai)

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State Dessert of Uttarakhand

उत्तराखंड की राजकीय मिठाई (State Dessert of Uttarakhand) बाल मिठाई (Bal Mithai) है। खोया को भूनकर बनाई गई गहरे भूरे रंग की यह एक चॉकलेटी मिठाई है जिसके चारों ओर चीनी के सफ़ेद गेंदों (खसखस) से सजाया जाता है। यह मिठाई उत्तराखंड के कुमाऊँ में बेहद प्रचलित है। अल्मोड़ा की बाल मिठाई विश्व भर में प्रसिद्ध है।  कहा जाता है कि सन 1865 में अल्मोड़ा के लाला बाजार में सबसे पहले बाल मिठाई बनाई गई थी और इसका श्रेय जोगा लाल साह को दिया जाता है।


उत्तराखंड का राजकीय खेल - फ़ुटबाल 

उत्तराखंड का राजकीय खेल (State Game of Uttarakhand) फ़ुटबाल है। वर्ष 2011 में फ़ुटबाल को उत्तराखंड का राजकीय खेल घोषित किया गया। फुटबॉल उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय खेल है। इस खेल में राज्य से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी निकले हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं। इसीलिये फुटबॉल को उत्तराखंड का राजकीय खेल घोषित किया गया।


उत्तराखंड की राजकीय तितली- 

  • कॉमन पीकॉक तितली

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State butterfly of Uttarakhand

उत्तराखंड को तितलियों का घर कहा जाता है। भारत में पाई जाने वाली करीब 1300 प्रजातियों में से 500 से अधिक प्रजाति अकेले उत्तराखंड में पायी जाती हैं। इसी कारण उत्तराखंड ने कॉमन पीकॉक तितली (Common peacock butterfly) को अपने राज्य प्रतीक चिन्हों में शामिल किया है। तितली को अपने प्रतीक चिन्हों में शामिल करने वाला प्रदेश उत्तराखंड, भारत का दूसरा प्रदेश है। इससे पहले महाराष्ट्र ने 2015 में ब्लू मारमान (Blue mormon ) को अपने राजकीय प्रतीक चिन्हों में शामिल किया था। कॉमन पीकॉक तितली का वैज्ञानिक नाम पैपिलियो बाइनर (Papilio bianor ) है।  कॉमन पीकॉक तितली को 07 नवंबर 2016 को राज्य के पांचवे चिन्ह (प्रतीक) के रूप में शामिल किया गया। वर्ष 1996 में यह तितली भारत वर्ष की सबसे सुंदर तितली के रूप में लिम्का बुक में अपना नाम दर्ज कर चुकी है। (उत्तराखंड के राजकीय चिह्न और प्रतीक)


उत्तराखंड का राज्य गीत

  • उत्तराखंड देवभूमि, मातृभूमि शत-शत वंदन अभिनन्दन। 

उत्तराखंड का राजकीय गीत 'उत्तराखंड देवभूमि मातृभूमि, शत-शत वंदन अभिनन्दन' है। इस गीत को नैनीताल निवासी प्रसिद्ध उद्घोषक, लेखक हेमंत बिष्ट ने लिखा है। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी और गायिका अनुराधा निराला ने इस गीत को अपने स्वरों से सजाया है। इस गीत में कुल 7 छंद हैं, जिनमें से पहले तीन छंद हिंदी फिर दो छंद कुमाऊंनी और गढ़वाली और अंतिम दो छंद हिंदी में लिखे गए हैं। दिनांक 6 फरवरी 2016 को 'उत्तराखंड देवभूमि मातृभूमि' को 'उत्तराखंड के राज्य गीत' का दर्जा दिया गया। 

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उत्तराखंड की राज्य सब्जी - 

कंडाली /बिच्छू घास सब्जी 

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कंडाली/सिस्युंण (scorpion grass) का साग उत्तराखंड के राजकीय सब्जी (State Vegetable of Uttarakhand) के रूप में शामिल है। हिंदी में इसे बिच्छू घास कहते हैं। अपने लाजबाव स्वाद के कारण प्रसिद्ध कंडाली/सिस्युंण का साग दशकों पहले से यहाँ के निवासियों के द्वारा खाया जाता था। बिच्छू घास की सब्जी मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, कैल्शियम, आयरन और विटामिन से युक्त औषधीय गुणों से भरपूर है। बिच्छू घास का वानस्पतिक नाम Urtica dioica है।  (State Emblem and Symbols of Uttarakhand)