राजुला और मालूशाही की अमर प्रेम लोकगाथा।
राजुला और मालूशाही की अमर प्रेम लोकगाथा। |
दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्टों, दो जातियों, दो देशों में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है राजुला मालूशाही-
कुमाऊँ और गढ़वाल में प्रेम गाथाएं झोड़ा, चांचरी, भगनौले और अन्य लोक गीतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में सुनी सुनाई जाती रही हैं। मेले इनको जीवन्त बनाते हैं। "राजुला मालूशाही" पहाड़ की सबसे प्रसिद्ध अमर प्रेम कहानी है। यह दो प्रेमियों के मिलन में आने वाले कष्टों, दो जातियों, दो देशों, दो अलग परिवेश में रहने वाले प्रेमियों की कहानी है। सामाजिक बंधनों से जकड़े समाज के सामने यह चुनौती भी थी। जहाँ एक तरफ बैराठ का संपन्न राजघराना है, वहीं दूसरी ओर एक साधारण व्यापारी, इन दो संस्कृतियों का मिलन आसान नहीं था, लेकिन एक प्रेमिका की चाह और प्रेमी का समर्पण प्रेम की एक ऐसी इबारत लिखता है जो तत्कालीन सामाजिक ढांचे को तोड़ते हुए नया इतिहास बनाती है।
राजुला मालूशाही की प्रचलित लोकगाथा -
"राजुला मालूशाही" की जो लोकगाथा प्रचलित है वह इस प्रकार है, कुमाऊँ के पहले राजवंश कत्यूर के किसी वंशज को लेकर यह कहानी है। उस समय कत्यूरों की राजधानी बैराठ वर्तमान चौखुटिया, अल्मोड़ा थी। जनश्रुतियों के अनुसार बैराठ में तब राजा दुलाशाह शासन करते थे। उनकी कोई नहीं थी, इसके लिए उन्होंने कई मनौतियां मनाई। अन्त में उन्हें किसी ने बताया कि वह बागनाथ (बागेश्वर) में शिव की आराधना करें तो तुम्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है। वह बागनाथ के मंदिर गए वहाँ उनकी मुलाकात भोट के व्यापारी सुनपत शौका और उनकी पत्नी गांगुली से हुई, वह भी संतान की चाह में वहाँ आए थे। दोनों ने आपस में समझौता किया कि यदि संतानें लड़का और लड़की हुई तो उनकी आपस में शादी कर देगें। ऐसा हुआ भगवान बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा का पुत्र हुआ, उसका नाम मालूशाही रखा गया। सुनपत शौका के घर में लड़की हुई, उसका नाम राजुला रखा गया। समय बीतता गया। जहाँ बैराठ में मालू बचपन से जवानी में कदम रखने लगा, वहीं भोट में राजुला का सौन्दर्य लोगों में चर्चा का विषय बन गया। वह जिधर भी निकलती उसका लावण्य सबको अपनी ओर खींचता था।
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पुत्र जन्म के बाद राजा दोलूशाही ने ज्योतिषी को बुलाया और बच्चे के भाग्य पर विचार करन को कहा, ज्योतिषी ने बताया कि "हे राजा तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्पआयु का योग है, इसका निवारण करने के लिए जन्म के पाचवें दिन इसका विवाह करना होगा" राजा ने अपने पुरोहित को शौका देश भेजा और उसकी कन्या राजुला से ब्याह करने की बात की, सुनपत तैयार हो गये और खुशी-खुशी अपनी नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर दिया। लेकिन विधि का विधान कुछ और था, इसी बीच राजा दोलूशाही की मृत्यु हो गई। इस अवसर का फायदा दरबारियों ने उठाया और यह प्रचार कर दिया कि जो बालिका मंगनी के बाद अपने ससुर को खा गई, अगर वह इस राज्य में आयेगी तो अनर्थ हो जायेगा। इसलिए मालूशाही से यह बात गुप्त रखी जाए।
धीरे-धीरे दोनों जवान होने लगे....राजुला जब युवा हो गई तो सुनपत शौका को लगा कि मैंने इस लड़की को रंगीली बैराठ में ब्याहने का वचन राजा दोलूशाही को दिया था। लेकिन वहाँ से कोई खबर नहीं है, यही सोचकर वह चिंतित रहने लगा।
एक दिन राजुला ने अपनी माँ से पूछा कि-
"माँ दिशाओं में कौन दिशा प्यारी है?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव? राजाओं में कौन राजा और देशों में कौन देश"?
उसकी माँ ने उत्तर दिया "दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो नवखंड़ी पृथ्वी को प्रकाशित करती है, पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, क्योंकि उसमें देवता वास करते हैं। गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी, जो सबके पाप धोती है। देवताओं में सबसे बड़े महादेव हैं, जो आशुतोष हैं। राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीला बैराठ"।
तब राजुला धीमे से मुस्कुराई और उसने अपनी माँ से कहा कि "हे माँ मेरा ब्याह रंगीले बैराठ में ही करना"। इसी बीच हूण देश का राजा विक्खीपाल सुनपति शौका के यहाँ आया और उसने अपने लिए राजुला का हाथ मांगा और सुनपत को धमकाया कि अगर अपनी कन्या का विवाह मुझसे नहीं किया तो हम तुम्हारे देश को उजाड़ देंगे। इसी बीच में मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रुप को देखकर मोहित हो गया और उसने सपने में ही राजुला को वचन दिया कि मैं एक दिन तुम्हें ब्याह कर ले जाऊँगा। यही सपना राजुला को भी हुआ, एक ओर मालुशाही का वचन और दूसरी ओर हूण राजा विक्खीपाल की धमकी, इस सब से व्यथित होकर राजुला ने निश्चय किया कि वह स्वयं बैराठ देश जायेगी और मालूशाही से मिलेगी। उसने अपनी माँ से बैराठ का रास्ता पूछा, लेकिन उसकी माँ ने कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, बैराठ के रास्ते से तुझे क्या मतलब? एक दिन रात में चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर राजुला रंगीली बैराठ की ओर चल पड़ी।
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वह पहाड़ों को पार कर मुनस्यारी और फिर बागेश्वर पहुँची, वहाँ से कफू पक्षी ने बैराठ का रास्ता दिखाया, लेकिन इस बीच मालूशाही ने शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात की तो उसकी मां ने पहले बहुत समझाया, उसने खाना-पीना और अपनी रानियों से बात करना भी बंद कर दिया, लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे बारह वर्षी निंद्रा जड़ी सुंघा दी गई। जिससे वह गहरी निंद्रा में सो गया। इसी दौरान राजुला मालू शाही के पास पहुँची और उसने मालूशाही को उठाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह तो जड़ी के वश में था, वह नहीं उठ पाया। निराश होकर राजुला ने उसके हाथ में साथ लाई हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने रख दिया और रोते-रोते अपने देश लौट गई। सब सामान्य हो जाने पर मालूशाही की निंद्रा खोल दी गई। जैसे ही मालू होश में आया उसने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी तो उसे सब याद आया और वह पत्र भी दिखाई दिया जिसमें लिखा था "हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निंद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी माँ का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना क्योंकि मेरे पिता अब मुझे वहीं ब्याह रहे हैं।" यह सब देखकर राजा मालू सिर पीटने लगे, अचानक उन्हें ध्यान आया कि अब मुझे गुरु गोरखनाथ शरण में जाना चाहिए, तो मालू गोरखनाथ जी के पास चले आये। (An Immortal Love Story of Uttarakhand - Rajula Malushahi)
गुरु गोरखनाथ जी धूनी रमाये बैठे थे। राजा मालू ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि मुझे मेरी राजुला से मिला दो, मगर गुरु जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसके बाद मालू ने अपना मुकुट और राजसी कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख को अपने शरीर में मलकर एक सफेद धोती पहनकर गुरु जी के सामने गया और कहा कि हे गुरु गोरखनाथ जी! मुझे राजुला चाहिए, आप यह बता दो कि मुझे वह कैसे मिलेगी, अगर आप नहीं बताओगे तो मैं यहीं पर विषपान करके अपनी जान दे दूंगा। तब बाबा ने आँखे खोली और मालू को समझाया कि जाकर अपना राजपाट सम्भाल और रानियों के साथ रह। उन्होने यह भी कहा देख मालूशाही हम तेरी डोली सजायेंगे और उसमें एक लड़की को बिठा देंगे और उसका नाम रखेंगे राजुला, लेकिन मालू नहीं माना, उसने कहा गुरु यह तो आप कर दोगे, लेकिन मेरी राजुला के जैसे नख-शिख कहाँ से लायेंगे? तो गुरु जी ने उसे दीक्षा दी और बहुत सारी विद्या सिखाई, साथ ही तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि दूण शौका देश का विष उसे न लग सके।
तब मालू के कान छेदे गये और सिर मूड़ा गया, गुरु ने कहा, जा मालू अपनी माँ से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा में खाना खा कर आ। तब मालू सीधे अपने महल पहुँचा तथा भिक्षा और खाना मांगा। रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी ! तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है। मालू ने उत्तर दिया कि मैं तेरा मालू नहीं, एक जोगी हूँ, मुझे खाना दे, रानी ने उसे खाना दिया तो मालू ने पाँच ग्रास बनाए, पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को दिया और पाँचवा ग्रास खुद खाया। तो रानी धर्मा समझ गई कि ये मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंच ग्रासी था। इस पर रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू क्यों जोगी बन गया, राजपाट छोड़कर ? तो मालू ने कहा- माँ तू इतनी आतुर क्यों हो रही है, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर आ जाऊँगा, मुझे हुणियों के देश जाना है। अपनी राजुला को लाने, रानी धर्मा ने उसे बहुत समझाया लेकिन मालू फिर भी नहीं माना, तो रानी ने उसके साथ अपने कुछ सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही जोगी के वेश में घूमता हुआ हूण देश पहुँचा। उस देश में विष की बावड़िया थी, उनका पानी पीकर सभी अचेत हो गये, तभी विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को अचेत देखा तो, उसे उस पर दया आ गई और उसका विष निकाल दिया। मालू घूमते-घूमते राजुला के महल पहुँचा, वहाँ बड़ी चहल-पहल थी, क्योंकि विक्खीपाल राजुला को ब्याह कर लाया था। मालू ने अलख लगाई "दे माई भिक्षा"। तो इठलाती और गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली "ले जोगी भिक्षा", पर जोगी उसे देखता रह गया, उसे अपने सपनों में आई राजुला को साक्षात देखा तो सुध-बुध ही भूल गया। जोगी ने कहा- हे रानी तू तो बड़ी भाग्यवती है यहाँ कहाँ से आ गई ? राजुला ने कहा जोगी बता मेरी हाथ की रेखाएं क्या कहती है ? तो जोगी ने कहा कि मैं बिना नाम-ग्राम के हाथ नहीं देखता, तो राजुला ने कहा कि मैं सुनपति शौका की पुत्री राजुला हूँ। अब बता जोगी मेरा भाग्य क्या है ? तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा "चेली तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीली बैराठ का मालूशाही था"। राजुला ने रोते हुए कहा कि "हे जोगी मेरे माँ-बाप ने तो मुझे विक्खीपाल से ब्याह दिया, गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया"। तो मालूशाही अपना जोगी वेश उतार कर कहता है कि मैंने तेरे लिए ही जोगी वेश लिया है, मैं तुझे यहाँ से छुड़ा कर ले जाऊँगा।
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तब राजुला ने विक्खीपाल को बुलाया और कहा कि ये जोगी बड़ा काम का है और बहुत विद्यायें जानता है। यह हमारे काम आयेगा, तो विक्खीपाल मान जाता है, लेकिन जोगी के मुख पर राजा का प्रताप देखकर शक तो हो ही जाता है। उसने मालू को अपने महल में रख लिया, लेकिन उसकी टोह वह लेता रहा। राजुला मालू से छुप-छुप कर मिलती रही तो विक्खीपाल को पता चल गया कि यह तो बैराठ का राजा मालूशाही है, तो उसने उसे मारने का षड़यंत्र किया और खीर बनाई जिसमें उसने जहर डाल दिया और मालू को खाने पर आमंत्रित किया और उसने खीर खाने को कहा । खीर खाते ही मालू मर गया। उसकी यह हालत देखकर राजुला अचेत हो गई। उसी रात मालू की माँ को सपना हुआ जिसमें मालू ने बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूँ, तो उसकी माता ने उसे लिवाने के लिए मालू के मामा मृत्यु सिंह (जो कि गढ़वाल के किसी गढ़ी के राजा थे) को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हूण देश भेजा।
सिदुवा-विदुवा रमौल के साथ मालू के मामा मृत्यु सिंह हूण देश पहुँचे। बहुत सारी विद्या का प्रयोग कर उन्होंने मालू को जीवित कर दिया और मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगाया और इसके सैनिकों ने हूणियों को काट डाला और राजा विक्खीपाल भी मारा गया। तब मालू ने बैराठ संदेश भिजवाया कि नगर को सजाओ, मैं राजुला को रानी बनाकर ला रहा हूँ। मालूशाही बारात लेकर बैराठ पहुँचा, जहाँ पर उसने धूमधाम से शादी की। तब राजुला ने कहा कि "मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी राजुला हूँ और जो दस रंग का होगा मैं उसी से शादी करुँगी"। आज मालू तुमने मेरी लाज रखी, तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो। अब दोनों साथ-साथ खुशी-खुशी रहने लगे और प्रजा की सेवा करने लगे।
यह कहानी उनके अजर-अमर प्रेम की दास्तान बन। इतिहास में जड़ गई कि किस प्रकार एक सामान्य से शौके की कन्या के लिए राजपाट छोड़कर जोगी वेश बनाकर वन-वन भटका एक राजकुमार मालू।
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प्रस्तुत आलेख उत्तराखंड को समर्पित सबसे पुराने वेबपोर्टल MeraPahad.com से लिया गया है।