गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा गाया 'चम चमकी घाम कान्ठियु मा, हिंवाली काँठी चंदी की बणीं गैनी' गीत में उत्तराखंड के सौंदर्य का वर्णन है। जिसमें 'घाम' यानि सूरज के निकलने से लेकर शाम को डूबने तक का मनोहारी वर्णन है।
गीत के माध्यम से रचयिता कहते हैं प्रातः सूर्य निकलने पर उत्तराखंड के पहाड़ों में पहली किरणें पड़ती हैं तो यहाँ की हिंवाली काँठी चाँदी के सामान धवल रंग के नजर आने लगती हैं। सबसे पहले यहाँ सूर्य की किरणें शिव जी के घर कैलाश में पहुँचती हैं और फिर सेवा लगाने के लिए विष्णु के धाम बदरीनाथ तक जाती हैं। उसके बाद ही चारों ओर सूर्य अपनी किरणें बिखेरता है। जब चारों ओर सूर्य की किरणें पहुँचने लगती हैं इसके बाद पेड़-पौधे, पशु-पक्षी सब जग लगते हैं। मंद-मंद हवाएं चलने लगती हैं। जैसे-जैसे सूर्य की किरणें फैल कर फूलों की पंखुड़ियों तक पहुँचती हैं वैसे ही फूल खिलने लगते हैं मानो नंगे कोखों पर किसी ने गुदगुदी लगा दी हो और वे अपने डालों पर खिलखिलाने लगते हैं और भौंरे, पक्षियों का फूलों की ओर आकर्षण बढ़ने लगता है।
वहीं पहाड़ों की बेटी-ब्वारियों के दिनचर्या का वर्णन भी इस गीत में किया गया है। जिसे आप इस गीत को सुनकर महसूस कर सकते हैं।
चम चमकी घाम कान्ठियु मा, हिंवाली काँठी चंदी की बणीं गैनी गीत के बोल (Lyrics) इस प्रकार हैं -