Lyrics-Ghughuti Na Basa, Aam Ki Daye Maa | घुघुती ना बासा, आम कि डाई मा।
घुघुती ना बासा, आम कि डाई मा, (Ghughuti Na Basa) इस गीत में पहाड़ की एक महिला जिसका पति देश सेवा में लद्दाख बॉर्डर तैनात है, वो एक खूबसूरत पहाड़ी पक्षी घुघूती जो गांव-घरों के आसपास ही रहता है से घुरु-घुरु न करने की विनती करती है। महिला कहती है- हे घुघूती ! आम के पेड़ में बैठकर तू मत गा। तेरे गाने से, तेरे घुरु-घुरु करने से मुझे उदास लगता है और बर्फीले लद्दाख में तैनात अपने स्वामी यानि पति की बहुत याद आने लगती है। ऋतु परिवर्तन के साथ ही मुझे अब अपने स्वामी की याद बहुत सताने लगी है। तेरे जैसे पंखों वाली मैं होती तो मैं भी अपने स्वामी के पास उड़ कर चली जाती और जी भर कर उनके मुख मंडल को निहारती रहती।
फिर घुघूती को विनती करते हुए विरहिणी कहती है- ओ घुघूती ! तू उड़ जा यहाँ से और दूर लद्दाख चले जा। वहां जाकर तू मेरा हाल मेरे स्वामी को बता देना।
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प्रस्तुत गीत 80-90 के दशक का है, जब संचार के कोई साधन नहीं थे। सिर्फ चिट्ठियों के माध्यम से ही कुशलक्षेम पहुँच पाती थी। एक महिला जिसका पति बॉर्डर पर तैनात है और काफी समय से घर नहीं आ पाया है, उस महिला की मनोदशा को इस गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। आप भी महसूस कीजिये घुघूती ना बासा गीत के भाव को।
कुमाऊंनी गीत 'घुघूती ना बासा' के लिरिक्स इस प्रकार हैं-