Harela Festival - खेति-पातिक साज-समाव करणक प्रतीक छू हर्याव।
लेख - चन्द्रशेखर तिवारी ज्यू
हर्यावक त्यारक दिन पहाड़ में हर्यावक तिनड़ पैरुण बखत असीखनक यो आंखर सुणन में औंनी -
गौं-समाजक सुख-समृद्धि और खुसहालिक लिजी करी गयी यो मंगलकामना सीद्ध तौर पर जीवेद् शरद् शतमैकि भावना बटि जुड़ी हुई छू।
चौमास में पहाड़क डान-कान जब हरी-भरी है जानि और खेती-पातिकन रंगत निखर जैं, तब मनखिक हिय में उल्लासक वातावरण पैद हैं जां। चौमासक बर्ख-पाणि पहाड़क फसलक लिजी उपयोगी हुणक वजहल काश्तकार लोग हर्यावक कै भौत महत्व दिनीं। झमाझम बर्ख-पाणिल जां गाड़-भिड़ में बोई धान, मडु, भट्ट और घ्वागैकि फसल पौइन लागि जानि वैं बाड़-ख्वाड़न में सगी मर्च, बैगण,तोरियां, गद्दू काकड़ जस साग-पातनौक बहार एजां। आंगनक ढीक स्यो, नाशपाति, आड़ू और दाड़िमक बोट-डावों में लै न्यारी रंगत दिखण फै जां। डाव में लागी नाना-नान फल जनर स्वाद आजि तक खट्ट हुंछी अब माठु-माठ मिठ रसल सरोबार हुण लाग जानी। यई टैम में घा-पात लै खूब हूं यैक वजहल घर-मवास में धिनालि-पाणिक लै दैल-फैल द्खण में ऊं।
हर्यावक त्यार पहाड़क लोकविज्ञान बै जुड़ी हुई छू। दरअसल हर्याव कै बीज परीक्षणक त्यार लै कई जां। हर्यावक तिनड़न कै देखि बेर काश्तकार अंदाज लगै लिनी कि बीजैकि गुणवत्ता कसि छू और कसि फसल ह्वलि। हर्यावक टुपर में जो विविध किस्मक अनाज बोई जानी, सही अर्थन में उ मिश्रित खेती-बाड़िक महत्व कै प्रदर्शित करनीं। गौलापारक प्रगतिशील किसान नरेंद्र मेहराक कथन छू कि हर्यावक त्यार सही अर्थन में पर्यावरणक रक्षा और बारहमासा खेती-बाड़िकै जीवंत बणाई रखणक एक अद्भुत प्रतीक पर्व छू।
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परंपरानुसार हर्यावक त्यार सौण म्हैणक पैल दिन कर्क संगरात हूं मनायी जां। हर्यावक त्यार बै नौ अथवा दस दिन पैलि हर्याव कै बोयी जां। रिंगावक टुकर या पातक दोण में माट भरि बेर उनन में पांच या सात किसमक अनाज धान, घ्वग, तिल, मास, घौत, भट्ट व सरसों आदिक बीज बोई जानी। इन टुकरन कै घरक द्यप्तथान में धरि जां। द्वी-एक दिन बाद हर्यावक बीज पौई जानीं और त्यार तलक बढ़ि बेर ठुल्ल है जानी। त्यार बै एक दिन पैलि ब्याव क बखत दाड़िमक हांगल हर्यावनक गुड़ाई करि जैं। शिव-पारबति और गणेश-कार्तिकेयक डिकार बणाई बाद हर्यावक दगड़ उनर पुज करीं जां। हर्यावक त्यारक दिन पुज करि बाद हर्यावक तिनड़ काटी जानी और द्याप्तन में चढ़ाई बाद हरेक पारिवारिक जाणियों कै हर्यावक तिनड़ पैराई जां। य त्यार में डाइ-बोट रोपणक लै रिवाज छू। लोक मान्यता छू कि इदिन बोटक हांग लै रोप दी जाओ, तो उमैले कल्ल फुटि जानी।
आजक टैम में अगर हम यो त्यार कै पहाड़ैकि परंपरागत खेत-बाड़िक संदर्भ में देखनूं तै हालत भौत चिंताजनक लागनी। मैदानक उज्याण लोगोंक पलायन दिन ब दिन बढ़ते रुणक वजहल गौं-बाखयि और गाड़-भिड़ बांजि हुणक कारणल परंपरागत खेती और बीज चौपट हुण लागि रै। कई जागन में लोग बागोंल अब अपुण खेती-पाती और धौ-धिनाई कै बिसरै बेर विकल्पक तौर पर पेंशन, मुफ्त अनाज, सस्त राशन, मनरेगा में काम और ध्याड़ी-मजूरील अपुण गुजर-बसर करण शुरु करि हाली। अब जां पैलि हर परिवार अपुण लिजी सात-आठ म्हैणक अनाज पैद करि लिछी वां अब मुश्किलल तीन-चार म्हैणक लिजी लै नि हुन।
सूपी-रामगढ़क फल काश्तकार बच्ची सिंह बिष्टक अनुसार फल पट्टी वाल इलाकन में काश्तकार लोग अब फल-फूल व शाक-सब्जीक उत्पादन कै ज्यादा बढ़ावा दिण लागि रीं और नाज पत्तनैक खेती अब भौत कम हुण लागि रै। योई कारणल अब परंपरागत खेति और उनर बीज खतम हुणैक कगार पर ए गईं जो भौत विचारणीय बात छू।
कुल मिलेबेर हर्यावक त्यार गौं समाजकै परस्पर जोड़नी वाल महान लोक पर्व छू। लोकक बीच में उल्लासक दगड़ मनायी जाणि वाल य लोकप्रिय त्यार निश्चित तौर पर हमन कैं परंपरागत खेति-पातिक साज-समावक लिजी आघिन ऊंण हूं और अपुण प्रकृतिकै बचूणक लिजी सतत प्रेरणा द्यूं।
Read here - Harela Festival of Uttarakhand gives the message of Environment Protection.
- Harela Festival 2022 Date - 16 July 2022
यो आलेख आज 16 जुलाई, 2021 कै नवभारत टाइम्सक सम्पादकीय पेज में प्रकाशित हुई छू।