Kot Bhramari Temple- जहाँ दो महाशक्तियों की पूजा का विधान है -
कोट भ्रामरी माता |
उत्तराखण्ड स्थित बागेश्वर जनपद के गरुड़ विकास खंड में कत्यूरी राजाओं की कुलदेवी भगवती भ्रामरी चंदवंशियों की भी कुलदेवी रही है। शक्ति रूप में स्थित इस देवी दरबार के बारे में कहा जाता है कि पूर्व में यहां पर केवल माता भ्रामरी की पूजा अर्चना होती थी, लेकिन अब वर्तमान में माँ भ्रामरी के साथ भगवती नंदा की पूजा का भी विधान है। (Kot Bhramari Devi Temple)
भगवती माँ भ्रामरी देवी की पूजा अर्चना का मेला चैत्र मास की शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है तथा माँ नंदा की पूजा अर्चना व मेला भाद्र मास की शुक्ल अष्टमी को आयोजित होता है। कहते हैं कि माँ नन्दा की प्रतिमा पहले यहाँ से करीब आधा किलोमीटर दूर झालामाली नामक गांव में स्थित थी, जिसे बाद में आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व देवी की प्रेरणा से पुजारियों ने भ्रामरी को कोट मंदिर में ही प्रतिष्ठापित कर दिया था। तभी से दोनों महाशक्तियों की पूजा अर्चना कोट भ्रामरी में ही सम्पन्न होती आ रही है।
कोट भ्रामरी देवी मंदिर की स्थापना -
माता कोट भ्रामरी के मंदिर का निर्माण कब व किसने किस प्रकार किया, यह आज तक रहस्य बना हुआ है। प्रसिद्ध कवियों, साहित्यकारों, लेखकों ने अपने-अपने शब्दों से इस दिव्य दरबार की महिमा का बखान किया है। इसी क्रम से प्रसिद्ध साहित्यकार जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित "ध्रुव स्वामिनी "नाटक ग्रंथ में चंद गुप्त का अपनी सेना की टुकड़ी के साथ इस क्षेत्र में रुकने का उल्लेख मिलता है।
जनश्रुतियों के अनुसार अपने साम्राज्य की विजय पताका फहराये रखे जाने हेतु कत्यूरियों ने सामरिक महत्व के मुख्य-मुख्य स्थलों पर मजबूत किलों का निर्माण कराया। इन्हीं किलों में कत्यूर घाटी के डंगोली में स्थित प्रमुख किला कोट मंदिर भी रहा है। कहा जाता है कि काशगर व खेतान के दर्रों से भारत की सीमा में प्रवेश करने वाले लकुलीश, खस, कुषाण आदि वंशावलियों के साथ-साथ कटोर वंशावली के कबीले भी प्रविष्ट हुए। कटोर वंशावली ही कालांतर में कत्यूर नाम से प्रसिद्ध हुई। इसी कत्यूर जाति के राजाओं ने उत्तराखंड के विभिन्न महत्व वाले स्थलों में अपने साम्राज्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए कोट व किलों का निर्माण किया।