वृक्षारोपण के साथ 16 जुलाई को मनाया जायेगा हरेला पर्व। | Harela Festival Uttarakhand


Harela Festival of Uttarakhand
Harela Wishes 2020

प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता उत्तराखण्ड के लोकपर्व हरेला इस वर्ष 16 जुलाई को मनाया जाएगा। सावन संक्रांति को मनाये जाने वाले इस पर्व को यहाँ बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। कुमाऊँ में यह पर्व हरेला और गढ़वाल में हरयाळी के नाम से जाना जाता है।

कुमाऊँ हरेला की तैयारियां ९ दिन पूर्व हरेले की बुवाई के साथ प्रारम्भ हो जाती है। लोग रिंगाल के छोटे टोकरियों में सात प्रकार के अनाज गेहूं, जौ, मक्का, चना, उड़द, गहत और सरसों की बुवाई करते हैं। घर में बने मंदिर के पास ही इस टोकरी को रखा जाता है और नित्य सुबह-शाम पूजा के समय इसकी सिंचाई की जाती है। ९वें दिन हरेले की गुड़ाई और १०वें दिन इसे पतीसा जाता है और घर की वरिष्ठ महिला द्वारा परिवार के सभी जनों को हरेला शिरोधार्य " जी रया, जागि रया। यो दिन, यो महैंण कैं नित-नित भ्यटनैं रया।" शुभाशीष के साथ किया जाता है। घर में बने पकवान लोग परिवार के साथ बैठकर करते हैं।  तत्पश्चयात अपने घरों के आसपास, खेतों, खाली भूमि पर पौधा रोपण करते हैं। उत्तराखंड में हरेले के दिन पौधारोपण करना अनिवार्य है। मान्यता है किसी पेड़ की शाखा को तोड़कर हरेले के दिन रोपा जाए तो उस शाखा से नये पेड़ का जन्म हो जाता है। होता भी ऐसा ही है। जिस पेड़ की पौध तैयार करना मुश्किल होता है, लोग उस पेड़ की शाखाएं तोड़कर हरेले के दिन गीली मिट्टी या नमी वाले स्थानों में रोप देते हैं। जिनसे नए कोपलें निकल आती हैं। जो बाद में एक वृक्ष का रूप लेता है। 

पर्यावरण और प्रकृति को जोड़ता हरेला पर्व अब उत्तराखण्ड सरकार द्वारा भी एक बड़े कार्यक्रम के रूप में मनाया जाने लगा है। विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये यहाँ वृहद् रूप में वृक्षारोपण करने का प्रयास यहाँ हर वर्ष राज्य सरकार कर रही है। विभिन्न सरकारी विभाग, स्कूली बच्चे, स्वयंसेवी संस्थाएं इस पर्व पर हजारों की संख्या में वृक्षारोपण कर रहे हैं। हरेला की महत्ता को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने इस वर्ष से हरेले पर सरकारी अवकाश करने की घोषणा की है ताकि सभी लोग अपने-अपने क्षेत्रों में इस पर्व के दिन वृहद वृक्षारोपण कर हरेले की महत्ता को और बढ़ा सके।