Real Environmental Guardians | असली पर्यावरण प्रहरी ग्रामवासी हैं।
बागेश्वर का पोथिंग गांव और पर्यावरण। |
वनाग्नि से लेकर वनों की दुर्दशा का एक प्रमुख कारण है पहाड़ के लोगों की वनों के प्रति बेरुखी और यह बेरुखी वन कानून के कारण है। ग्रामीणों को जब जंगल में जाने के अधिकार थे, जंगल समृद्ध थे, क्योंकि उनको जंगल से लगाव था, वह अपने बच्चों की तरह जंगल की परवाह करते थे, जब से ग्रामीणों को जंगल जाने से रोका गया, जंगल अनाथ हो गए और दुष्परिणाम सामने है। पहले घास लेने गई महिलायें नये पेड़ों की गुड़ाई कर देती थी, उस तक धूप ना पहुंचे तो पेड़ों की छंटाई कर देती, अवांछित पेड़ों को जंगल में उगने ही नहीं देती थी। सरकार को समय रहते अभी भी वन कानून में सम्बंधित ग्रामीणों के हक हकूक देने होंगे, तभी जंगल बचे और बने रहेंगे।
अनियोजित विकास ने तराई भावर के पेड़ खत्म कर दिये, जिससे ग्लेशियरों तक गर्म हवायें पहुंच रही हैं और एशिया का वाटर टैंक हिमालय सिकुड़ रहा है। खाली पर्यावरण दिवस मनाकर भाषणबाजी से कुछ हासिल न हुआ न होगा। इसलिए सबसे पहले सरकारों को पर्यावरण प्रहरी बनना होगा, कम से कम अगली पीढ़ी के लिए शुद्ध हवा और पानी तो बचाना ही होगा। बाकी पेड़ लगाकर फोटो खिंचवाने वाले तो बहुत हैं, लेकिन विश्वेसर प्रसाद सकलानी, सच्चिदानंद भारती और कुंवर दामोदर राठौर बहुत कम, जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य ही वनों को समर्पित कर दिया।
- श्री पंकज महर दाज्यू की कलम से।
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