पर्यावरण संरक्षण को समर्पित हरी नारायण दास।
Baba Hari Narayan (Pokhari Baba) |
कपकोट तहसील स्थित तोली
गांव के हीरा सिंह गड़िया के घर जन्मे हरी नारायण दास निर्धनता के कारण
कक्षा चार से आगे नहीं पढ़ सके। 18 वर्ष की उम्र में वह गूलरभोज नैनीताल
जाकर सरकारी अस्पताल में वार्ड ब्वाय बन गए, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा
और नौकरी छोड़ कर हरिद्वार चले गए।
जूना
अखाड़े में एक साल रहने के बाद वह पंजाब के संगरूर जिले के डंगाले खुर्जा
स्थित उदासीन अखाड़े के श्री महंत बद्री नारायण दास के सानिध्य में आ गए।
श्री महंत ने उन्हें दीक्षा दी। इसके बाद 1991 में दोनों भनार गांव स्थित
शिखर पर्वत पर आ गए। श्री महंत के नेतृत्व में श्री मूल नारायण, नौलिंग देव
सनगाड़, धोबी नौलिंग पचार के भव्य मंदिरों का निर्माण शुरू किया। भनार में
बंज्यैण मंदिर के निर्माण के दौरान उनके गुरु बद्री नारायण दास ब्रह्मलीन
हो गए। गुरु की आगे की जिम्मेदारी पूरी करने के बाद हरी नारायण 1995 में बागेश्वर जनपद स्थित कपकोट के पोखरी गोरखनाथ मंदिर पहुंचे। तब यहां मंदिर बहुत छोटा था और आसपास चीड़
के दो चार पेड़ थे। मंदिर के भव्य निर्माण कराने के साथ ही उन्होंने वहां
पौधरोपण शुरू किया। उनके रोपे बांज, बुरांश, पदम, सुरई, मेहल, काफल, नीबू,
अखरोट के करीब सैकड़ों पौधे अब बड़े हो गए हैं। बाबा ने मंदिर के आसपास की
उबड़खाबड़ जमीन को समतल कर दिया है। उनकी कर्मठता का यहां हर कोई कायल है।
बाबा हरी नारायण दास मंदिर में अब तक चढ़ावे में आए करीब 20 लाख रुपए से
धर्मशालाओं, गौशाला और फील्ड का निर्माण कर चुके हैं। पूर्व जिला पंचायत
अध्यक्ष विक्रम शाही ने अपनी निधि से ढाई लाख रुपए जबकि पूर्व विधायक शेर
सिंह गड़िया ने अपनी निधि से सोलर लाइट लगाई है। उनके द्वारा स्थापित
पुस्तकालय में 18 पुराण और चार वेद के अलावा अनेक धार्मिक पुस्तकें हैं।
उन्हें संगीत में भी रुचि है।
विनोद गड़िया द्वारा टंकित श्री गणेश उपाध्याय जी का आलेख।
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पर्यावरण संरक्षण को समर्पित हरी नारायण दास