Harela Festival Uttarakhand -पर्यावरण को समर्पित लोकपर्व।
Harela Festival पर्यावरण असंतुलन भले ही आज बड़ी समस्या हो, लेकिन उत्तराखंड पर्यावरण के प्रति शुरू से संवेदनशील रहा है। देवभूमि के कई ऐसे पर्व हैं, जो पूरी तरह पर्यावरण को समर्पित हैं। हरेला पर्व भी इन्हीं में से एक है। यह त्योहार संपन्नता, हरियाली, पशुपालन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
उत्तराखण्ड में श्रावण मास में हरेला पर्व (Harela Festival) बड़े हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। पीढ़ियों से चली आ रही वृक्षारोपण करने की परम्परा आज भी यहाँ कायम है। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा भी 'हरेला पर्व ' को बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा है। इस पर्व पर हर वर्ष हजारों पेड़ों को लगाया जा रहा है। इस वृहद वृक्षारोपण के कारण हरेला पर्व की चर्चा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होने लगी है।
उत्तराखण्ड में कैसे मनाया जाता है हरेला त्यौहार ?
उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में हरेला की शुरुवात 9 दिन पूर्व हरेले की बुवाई से प्रारम्भ हो जाती है। एक रिंगाल के टोकरी में मिट्टी भरकर घर के द्याप्ता थान यानि मंदिर के समीप सात प्रकार के अनाज गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों व चने की बुवाई की जाती है। हर दिन सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा जाता है और नौंवे दिन गुड़ाई की जाती है। दसवें दिन हरेले को काटा जाता है। स्थानीय बोली में इसे 'हरेला पतीसना' कहते हैं। तत्पश्चात घर की सयानी महिला द्वारा परिवार के सभी जनों को इस शुभकामना के साथ हरेला शिरोधार्य किया जाता है-
जी रया, जागि रया,भावार्थ : तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता रहे, आपका परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले, आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो।
यो दिन, यो महैंण कैं नित-नित भ्यटनै रया।
दुब जस पगुर जया,
धरती जस चाकव, आकाश जस उच्च है जया।
स्यूं जस तराण ऐ जौ, स्याव जसि बुद्धि है जौ, ।
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
जी रया, जागि रया।
हरेला पर वृक्षारोपण के लिए तैयार महिला समूह | फरसाली (बागेश्वर) |
हरेला शिरोधार्य कर सभी लोग एक साथ बैठकर घर में बने बेडू पूड़ी, हलवा, खीर आदि पकवानों का आनंद लेते हैं। सभी पर्वों की तरह लोग इस दिन दही-केले का भी स्वाद लेते हैं। इसके बाद फलदार, छायादार, चारा पत्ती हेतु उपयोग आने वाले पेड़ों रोपण किया जाता है। बड़े पेड़ों की टहनियों को रोपकर भी उनमें एक नया जीवन पनप आता है।
सदियों से चली आ रही परम्परा -
उत्तराखंड में हरेला पर्व पर पेड़ों को रोपने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। आज इस पर्व को राज्य स्तर पर सरकार द्वारा भी मनाया जाने लगा है। हर वर्ष हरेला पर्व पर हजारों की तादात में वृक्षारोपण सरकारी संस्थाओं के द्वारा हो रहा है। 'हरेला पर्व' को आज समस्त देशभर में एक वृक्षारोपण कार्यक्रम के रूप में भी मनाने की आवश्यकता है ताकि हमारी धरा हरी-भरी रहे।