कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार पर एक रोचक लोककथा।

Ghughutiya-Festival-Story

Ghughutiya Festival Story: उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में माघ माह की संक्रांति पर एक लोक पर्व मनाया जाता है जिसे 'घुघुतिया त्यार' के नाम जानते हैं। इस दिन यहाँ एक ख़ास तरह का पकवान बनाया जाता है जिसे 'घुघुते' कहते हैं। आटा, घी और गुड़ के शर्बत से तैयार किये गए इस पकवान को सर्वप्रथम कौओं को खिलाया जाता है। फिर बच्चे इसकी माला बनाकर गले में धारण करते हैं। इस त्योहार पर घुघुते बनाने के पीछे एक लोककथा है, आईये जानते हैं। 

Ghughutiya Festival Story

बात उस समय की है जब कुमाऊँ में चंद राजा कल्याण चंद का शासन था। राजा की कोई संतान नहीं थी। राजा का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण उसका सेनापति को समझता था कि राजा की मृत्यु के बाद पूरा राज्य उसे प्राप्त हो जायेगा। 
 
एक बार राजा कल्याण चंद बागेश्वर स्थित बागनाथ मंदिर गए और उन्होंने बाबा बागनाथ से संतान प्राप्ति की कामना की। उनकी कृपा से राजा को पुत्र प्राप्ति हुई। जिसका नाम निर्भय चंद रखा गया। निर्भय को घुघुती (जंगली कबूतर) से बेहद प्रेम था। राजकुमार का घुघूती के लिए प्रेम देख एक कौवा चिढ़ता था। 
 
उधर, राजा का सेनापति राजकुमार की हत्या कर राजा की पूरी संपत्ति हड़पना चाहता था। इस मकसद से सेनापति ने एक दिन राजकुमार की हत्या की योजना बनाई। वह राजकुमार को एक जंगल में ले गया और पेड़ से बांध दिया। ये सब उस कौवे ने देख लिया और उसे राजकुमार पर दया आ गई। इसके बाद कौवा तुरंत उस स्थान पर पहुंचा जहां रानी नहा रही थी। उसने रानी का हार उठाया और उस स्थान पर फेंक दिया जहां राजकुमार को बांधा गया था। 
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रानी का हार खोजते-खोजते सेना वहां पहुंची जहां राजकुमार को बांधा था। राजकुमार की जान बच गई तो उसने अपने पिता से कौवे को सम्मानित करने की इच्छा जताई। कौवे से पूछा गया कि वह सम्मान में क्या चाहता है तो कौवे ने घुघते का मांस मांगा। इस पर राजकुमार ने कौवे से कहा कि तुम मेरे प्राण बचाकर किसी और अन्य प्राणि की हत्या करना चाहते हो यह गलत है। 
 
राजकुमार ने कहा कि हम तुम्हें प्रतीक के रूप में मकर संक्रांति को अनाज से बने घुघते खिलाएंगे। कौवा राजकुमार की बात मान गया। इसके बाद राजा ने पूरे कुमाऊं में कौवों को दावत के लिए आमंत्रित किया। राजा ने  आदेश दिया कि पूरी जनता घुघुते बनाकर कौओं को खिलाये। राजा का यह आदेश कुमाऊं में पहुंचने में दो दिन लग गए। इसलिए यहां दो दिन घुघत्या का पर्व मनाया जाता है।