Buransh बुरांश - कविवर सुमित्रानंदन पन्त की कुमाऊंनी में कविता।
'प्रकृति के सुकुमार कवि' के नाम से ख्याति प्राप्त कविवर सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के कौसानी में 20 मई, सन 1900 में हुआ था। जन्म के कुछ घंटे बाद ही माँ के परलोक चले जाने के कारण इनका पालन-पोषण उनकी अम्मा यानी दादी के हाथों हुआ था। हिमालय की गोद और प्रकृति के बीच पले सुमित्रानंदन पंत के लिए यहाँ का वातावरण बेहद अनुकूल था। इन्होने प्रकृति को ही अपनी माँ माना और अपनी समस्त कृतियों के लिए प्रकृति से ही प्रेरणा ली।
सुमित्रानंदन पंत की दुधबोली 'कुमाउनी' है। लेकिन कुमाउनी भाषा में इन्होने कम की रचनाएँ की। आज एकमात्र बुरांश पर लिखी कुमाउनी कविता ही पाठकों को पढ़ने के लिए प्राप्त होती है। यह कविता उन्होंने पहाड़ के एक खूबसूरत फूल बुरुंश यानी बुरांश की खूबसूरती पर लिखा है। इस कविता के माध्यम से कहते हैं 'सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां' अर्थात 'पूरे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं है रे कोई नहीं है।' यह कविता इस प्रकार है -
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बुरांश पर सुमित्रानंदन पंत की कुमाउनी कविता:
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां ।
सल्ल छ, दयार छ , पई अयांर छ ,
सबनाक फाडन में पुडनक भार छ ,
पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग ,
रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ ।
सारि दुनि में मेरी सू ज , लै क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ ।
काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आँखोड़ छ ,
हिसालु , किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ ,
पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ ,
फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ?
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा ॥
- सुमित्रानंदन पन्त
नोट : यह कविता कविवर सुमित्रानंदन पन्त जी की अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में एक मात्र कविता है.
फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां ।
सल्ल छ, दयार छ , पई अयांर छ ,
सबनाक फाडन में पुडनक भार छ ,
पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग ,
रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ ।
सारि दुनि में मेरी सू ज , लै क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ ।
काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आँखोड़ छ ,
हिसालु , किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ ,
पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ ,
फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ?
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां ,
मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा ॥
- सुमित्रानंदन पन्त
नोट : यह कविता कविवर सुमित्रानंदन पन्त जी की अपनी दुदबोली कुमाऊंनी में एक मात्र कविता है.