Gariya Bagwal-A Family Festival गड़िया बग्वाल – उत्तराखण्ड का एक पारिवारिक पर्व।
Gariya Bagwal Poster 2018 |
उत्तराखंड में मनाए जाने वाले अधिकतर त्यौहार कृषि से संबंधित ही हैं। इन्हीं में से हैं दीपावली पर्व के बाद मनाए जाने वाले गोवर्धन पूजा और भैय्यादूज त्यौहार। इन त्यौहारों को लोग दीपावली पर्व पर ही जहां धूमधाम से मनाते हैं वहीं कपकोट ब्लॉक के पोथिंग समेत कई गांवों में रह रहा गढ़िया परिवार इन्हें दीपावली पर्व के ठीक एक माह बाद ‘गढ़िया बग्वाल’ के रूप में मनाता है।
गढ़िया बग्वाल मार्गशीष माह की चतुदर्शी की रात से आरंभ होकर अमावस्या की सुबह संपन्न होता है। अन्य पर्वों की तरह ही ‘गढ़िया बग्वाल’ के दिन तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। अपने कुल देवी-देवताओं और अपने पितरों को पूजा जाता है। पालतू जानवरों को रोली का टीका लगाकर सींगों पर तेल लगाया जाता है। तत्पश्चात जानवरों को जौ के लड्डू यानि ‘पिण्ड’ खिलाये जाते हैं। परिवार के लोग एकत्रित होकर सामूहिक भोज करते हैं। बग्वाल के दिन सभी गढ़िया परिवार के लोगों द्वारा अपनी बेटियों को भोज के लिए ससुराल से मायका जरुर बुलाया जाता है, किसी कारणबस बेटियां नहीं आ पाती हैं तो परिवार का एक सदस्य बेटी के ससुराल (घर) त्यौहार पर बनाये गए पकवान पहुँचाने की परम्परा है।
इस त्यौहार पर ब्याही बेटियां बड़े उत्साह के साथ अपने मायके आते हैं। बहुत बार बेटियों को कहते हुए सुना कि उन्हें इस त्यौहार का बेसब्री से इन्तजार रहता है। पहाड़ की बेटियों के लिए यह पर्व ‘आराम का पर्व’ भी है। क्योंकि इस पर्व के आने तक वे अपने सम्पूर्ण कार्य जैसे फसल समेटना, बुवाई करना, घास काटना इत्यादि पूर्ण कर चुकी होती हैं और वे बेफिक्र होकर मायके का आनंद ले सकती हैं।
‘गढ़िया बग्वाल’ कपकोट ब्लॉक क्षेत्र के पोथिंग, गड़ेरा, तोली, लीली, डॉ, लखमारा, छुरिया, बीथी-पन्याती, कन्यालीकोट, कपकोट, पनौरा, फरसाली आदि गांवों के गढ़िया परिवार के लोग मानते हैं।
‘गढ़िया’ लोगों द्वारा अपना त्यौहार ‘गढ़िया बग्वाल’ मनाने पीछे लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। लोग कहते हैं कि जब दीपावली के बाद द्वितीया पर्व (च्युड़ी बग्वाल) मनाया जाता है तब शायद गढ़िया परिवार का कृषि कार्य पूरा नहीं हुआ होगा क्योंकि इस समय खेतों में गेहूं, जौ इत्यादि की बुवाई का काम चरम पर होता है। इसी व्यस्तता के कारण गढ़िया परिवार के पूर्वजों ने इस त्यौहार को बाद में मनाने का निर्णय लिया हो।
गढ़िया त्यौहार (बग्वाल) मानने के पीछे जो भी तर्क हों लेकिन आज हमारे सामने चुनौती है तो अपने लोक पर्वों, तीज-त्यौहारों, मेलों आदि को जीवित रखे रहने की।
nice
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